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मन का कमरा
मैं हर किसी को अपने घर में घुसने की इज़्ज़त नहीं देती, ये मेरी ज़िन्दगी मेरा घर हैं।
किसी को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करना ठीक अपने घर में घुसने की इज़्ज़त देने जैसा ही हैं। कभी कोई दोस्त बनकर , कभी कोई रिश्तेदार, कभी हमसफर, कोई बस जानपहचान वाला, या कभी कोई शुभचिंतक बन कर, हमारी जिंदगी में शामिल हो जाता है।
जैसे ही हम उसे खुद अपने से परिचय करने लगते है तो उसे अपनी ज़िंदगी के घर में झांकने के इज़्ज़त देते हैं। घर जो हमारी पहचान होता है, ख़ुशी और दुख की तस्वीरें होती है। अपनों की परछाई, कभी बनावटी तस्वीरें । जहां किसी की रसोई में कभी अच्छाई का तो कभी बुराई का अनाज मिलेगा, जिसके नलकों में कभी गुस्से का पानी बहता है, कभी खुशी का , कभी एहसास-ए-कमतरी का ,कभी अना से लबालब बाल्टियां मिलती है। इस ज़िन्दगी के घर में लोग कब घर में घुस जाते है पाता नहिं चलता, कभी कभी बातों बातों में हम उन्हें आने का निमंत्रण दे देते है या कभी वो खुद ही बहानो की घंटी बजा के घुसते चले आते है। कुछ लोग बस घर में तस्वीरें देखने आते है कितनी खुशी की है कितनी दुख की। कुछ लोग उन तस्वीरों का मज़ाक भी बनाते है। कुछ लोग घर में झरती दीवारों की, छतों पे आयें हुए सीलन की ही बातें करते है। कुछ वहाँ पे टंगे मेडल की कहानी सुनना चाहते है। किस की रसोई में काली दाल बन रही है या किसकी हरकतों से अचार तीखा हुआ है। किसकी चादर मैली है , किसके कपड़ों पे कितने दाग़ है ये ताक झांक करने चले आते है।
और ये आने जाने का सिलसिला चलता रहता है। घर में तो अक्सर लोग आते जाते रहते है, कुछ अक्सर आते है, कुछ कभी कभार , कुछ कभी ज़िन्दगी में एक बार, और कुछ ऐसे भी है जो उसी घर में रहते है।
पर मन का कमरा बस किन्हीं गिने चुने लोगों के लिए ही खुलता है। घर में घुसने के बाद अगर हम मन की कमरे की तरफ झाँके तो कभी कोई पर्दा डाल के रखता है तो कोई दरवाज़ा लगा कर। मन के कमरे में कोई घुसता नही चला जाता या तो आपको बुलाया जाता है या कभी घर में आते जाते आप इतने क़रीब आ जातें है कि कमरे में कब दाख़िल हो गए आपको पता नहिं चलता। किसी के मन के कमरे में जाना इज़्ज़त की बात है या आप उसकी इज़्ज़त करते है या वो आपकी तभी वो आपको इज़्ज़त देता है। घर मे रहने वाले लोग मन के कमरे की बनावट तो जानते है पर उसके अंदर दबें छुपे हुए उन तहख़ानों से शायद वो भी परिचित नहीं होते। ये तिजोरियां है जिसमें भावनाओं की पूँजी है, किसी के प्रेम के राज़ है, किसी की बचपन की कड़वाहट है, किसी की ज़वानी की कोई ग़लती । किसी के टूटे दिल के टुकटे किसी कपड़े में लिपटे छुपाये रखे है, तो किसी के सपनों की पोटली की गाँठ बांध के मन के कमरे के किसी कोने में दबा के छोड़ दिया है। किसी के मन के कमरे में बड़ी रोशिनी होती है किसी के बस अंधेरा।
मन का कमरे में रखी तिजोरियां, वहाँ पे टांगें शीशे, खुद के उतरे कपड़ें, कोई नया लिबास, दबी छिपी पुरानी चिठ्ठी, किसी की कमाई, किसी के पहचान के गहने। मन का कमरा एक क़ीमती जगह है। हर हर कोई अपने मन का कमरा हर किसी के खोल के नहीं रखता और अगर कोई खोल दे तो आप उसके अज़ीज़ है और आपको इसकी इज़्ज़त करनी चाहिये।
© maniemo