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"बदलाव"
" बदलाव "

बदलाव एक प्राकृतिक नियम है। कुछ बदलाव अच्छे थे तो कुछ बुरे, ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ था, कुछ अनचाहे बदलाव, अनचाहे इसलिए क्यूंकि में एक लड़की हूँ, और समाज मुझे महज़ एक लड़की के रूप में ही देखता है, इंसान या व्यक्ति के रूप में नहीं।

पंधरा बरस की थी मैं जब मुझे मेरे अपने ही घर मे मेहमान की तरह सबसे अलग रक्खा गया था। ना मुझे कोई छू सकता था, ना ही मैं किसीको छू सकती थी।

मेरे लिए यह सब नया और समझ के परे था, मेरी बचपने वाली खिलखिलाती हँसी अब एक दिखावटी मुस्कान में तब्दील हो रही थी और बचपन के यार भी अब लड़की दोस्त और लड़के दोस्त में बंट चुके थे।

मेरा खुल के जीना अब लोगों को बेशर्मी लगने लगा था और मेरी हर बात पर शर्म, हया और तहज़ीब की मुहर लगाई जाती, और ऊँचा बोलने की इजाज़त तो मुझे थी ही नहीं।

अब एक जो अच्छी बात थी वो बस ये, की मेरे आइने से अब मेरी दोस्ती हो गई थी, उस वक़्त मन में अनगिनत सवाल थे, हाँ जानती हूँ यह सब सिर्फ मेरे ही साथ नही हुआ सब लड़कियों के साथ होता है, और हर किसी को इन सब से गुज़रना पड़ता है, और मुमकिन है उनके मन में भी मेरे जैसे ही अनगिनत सवाल हों, पर जवाब नहीं।

हाँ! इतने सारे बदलावों को स्वीकार करना आसान नहीं है, ज़रुरत है उन्हें इस बारे मे समझने की और इस समाज को उन्हें समझने की, और समय रहते हमें विस्तार में समझाने की ताकी ये बदलाव अनचाहे ना लगें..!!