...

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अवलोकन
रोज की तरह
मै उनसे बाते कर रही थी...
और वो हमेशा की तरह उलझें हुए थे खुद मे
पुरुष क्यों स्त्री के मन के भाव नहीं समझता
वो उसे पा लेने की लालसा मे
उसे खोने लगता है
और स्त्री उसकी ओर,
आस से देखती रहती है...
और पुरुष लाफरवाह सा..
झटक देता है उसकी नज़रो को
स्त्री प्रेम के अथाह सागर मे गोते लगाते हुए
उसके प्रेम की गहराई मे डूबना चाहती है
मन मे कई भावो को लिए
स्त्री
पुरुष से सिर्फ उसका हाथ
थामे रखने की फरियाद करती है
उसे क्यों चाँद तारे समझ नहीं आते
चांदनी रात्रि मे स्त्री के मन की
थाह लेनी नहीं आती
वो खुद मे क्यों उलझा होता है
बिखरी हुई सौंदर्यता को
समेटना उसे क्यों नहीं आता
स्त्री पुरुष के आँखों मे झाँक कर,
सब जान जाती है
और पुरुष स्त्री को जान नहीं पाता क्युकी
वो आँखों मे झाँकता है
पुरुषत्व के अहंकार को लेकर
एक प्रेम मे पड़ी स्त्री
पुरुष को पूर्णता प्रदान कर सकती है
पर उसके लिए जरुरी है
पुरुष का पूर्णतम समर्पण.