...

3 views

अनोखा वरदान
विजय सिंह नाम का एक राजा था। यह अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था। एक बार वह तूफानी रात में घोड़े पर सवार होकर एक लंग से रास्ते से जा रहा था। वह भेस बदले हुए था। मामूली कप पहनकर साधारण जनता के बीच जाकर उनके हाल-चाल का पता लगाना उसका नियम था|

एक रात राजा भेस बदलकर जा रहा था। तभी वर्षा होने लगी। कुछ ही देर में यह बिलकुल भीग गया। परंतु उसे इसकी चिंता नहीं थी। उसे अँधेरे की भी परवाह नहीं थी। यह धीमे-धीमे लेकिन सावधानी से चल रहा था। उसके घोड़े का पीछा करते हुए डाकू भी चुपके-चुपके चले जा रहे थे। डाकू राजा के शानदार घोड़े पर हाथ साफ करना चाहते थे।

अचानक डाकुओं ने राजा को घेर लिया। राजा एक बार तो सकते में आ गया मगर वह घबराया नहीं। वह बच निकलने की तरकीब सोच ही रहा था कि उसके घोड़े का सुर सड़क के गढ़ में फँस गया। डाकू अभी राजा पर लपकने ही वाले थे कि एक ओर से छह नौजवान वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने देखा कि एक आदमी मुसीबत में है। उन्होंने डाकुओं पर हमला किया। पीछे से अचानक हमला हुआ तो डाकुओं का ध्यान बँट गया और इस प्रकार राजा बच निकला।

राजा जहाँ भी भेस बदलकर जाता था. उसके पीछे-पीछे कुछ दूरी पर उसके चुने हुए अंगरक्षक भी रहते थे। थोड़ी देर बाद राजा के अंगरक्षकों का दल भी आ पहुँचा। उन्होंने सभी डाकुओं को बंदी बना लिया। राजा उन नवयुवकों से बड़ा प्रसन्न था, क्योंकि बिना यह जाने कि वह राजा है, उन्होंने डाकुओं से उसकी रक्षा की थी। राजा ने उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद दिया और कहा कि वे उसके साथ महल तक चलें।

भोर होने पर रात की घटना का समाचार सब जगह फैल गया। सारी प्रजा खुश थी कि डाकू उनके राजा का बाल बाँका न कर सके। राज्य परिवार के लोगों, मंत्रियों, दरबारियों और सारी जनता ने नवयुवकों के साहस की प्रशंसा की। अगले दिन दरबार में इन नौजवानों को राजा के सामने लाया गया। राजा ने अपने सिंहासन से उतरकर उन्हें गले से लगाया और मन चाहा पुरस्कार माँगने को कहा। राजा ने कहा, "आप बारी-बारी से जो चाहे माँगो। अगर मेरे बस के बाहर न हुआ तो मैं इसी समय आपकी कोई भी इच्छा पूरी कर दूँगा।"

उन छहों में जो सबसे बड़ा था. राजा ने पहले उसी से पूछा। एक पल के लिए उसने सोचा और फिर कहा, "महाराज बहुत दिनों से मेरी लालसा थी कि मेरे पास आराम से रहने के लिए एक घर हो। मुझे बस एक अच्छा सा मकान चाहिए।"

राजा ने उसी समय उस नौजवान के लिए एक आलीशान भवन बनाने की आज्ञा दे दी। अब दूसरे नौजवान की बारी थी। वह अपने पद में तरक्की था। राजा ने उसे राज्य दरबारी नियुक्त कर दिया और इस तरह उसकी इच्छा पूरी की।

तीसरे नवयुक ने कहा, "सरकार मेरे गाँव के लोग हर सप्ताह नगर में सब्जी तरकारी बेचने आते हैं। गाँव और शहर के बीच कोई अच्छी सड़क नहीं है, इसलिए उन्हें बड़ा कष्ट होता है, खासकर बयान में। मेरी बिनती है कि एक अच्छी सड़क बनवा दी जाए ताकि उनका कष्ट दूर हो।"

राजा ने उसी समय सड़क और पुलों का निर्माण कराने वाले मंत्री को हुक्म दिया कि फौरन सड़क बनाने का काम शुरू कर दिया जाए।

जब चौथे नौजवान से उसकी इच्छा पूछी गई तो वह शरमाते हुए बोला, "महाराज आप मेरे पिता समान हैं। मैं एक सुंदर पत्नी चाहता हूँ।" राजा के विदूषक की एक सुंदर कन्या थी। राजा ने विदूषक से पूछा। उसने खुशी से उस को दामाद बनाना स्वीकार कर लिया।

पाँचवें नौजवान ने धन माँगा। उसी समय बोरों में सोना भरकर उसे दे दिया गया।

अब छठे की बारी थी। उसने कहा, "महाराज। मेरी बस यही इच्छा है कि जब तक मैं और आप जीवित रहें. वर्ष में एक दिन आप मेरे यहाँ अतिथि बनकर आएँ।" इस अनोखी इच्छा को सुनकर सब हैरान रह गए।

बहुत से लोगों ने तो नौजवान को मूर्ख समझा। स्वयं राजा को भी यह बात अजीब-सी लगी कि नौजवान अपने लिए कुछ माँगने के बजाए उसी को अतिथि बनाना चाहता है। लेकिन उसने तो शुरू में ही कह दिया था कि जब तक उसके वश में होगा, वह उनकी इच्छा पूरी करेगा। बस फिर क्या था। वर्ष में एक दिन और एक रात उसने उस नवयुवक का अतिथि बनना स्वीकार कर लिया।अब राज्य सरकार के विभिन्न विभागों की जिम्मेदारी हो गई कि राजा जब नौजवान के घर जाएँ तो उनके दौरे का ठीक-ठीक प्रबंध हो। न राजा को किसी प्रकार का कष्ट हो और न उनके सेवकों को और न घोड़ों को बढ़िया सड़क बनाना जरूरी था ताकि राजा का रथ आसानी से जा सके। फिर यह प्रश्न उठा कि राजा एक छोटे से मकान में दिन और रात कैसे काटेंगे? कहाँ उठेंगे-बैठेंगे? कहाँ खाएँगे पिएँगे? कहाँ सोएँगे? अतः राजसी ठाठ-बाट के लायक एक महल खड़ा करवाया गया। लेकिन नौजवान अपनी मामूली-सी आमदनी में इतने बड़े महल की देख-रेख का खर्च कैसे चलाएगा? कैसे राजा और उनके संगी साथियों की देखभाल करेगा? इसके लिए उसे बहुत सारा धन दिया गया। सरकारी खर्च पर नौकर चाकर भी।

पुरानी चली आ रही प्रथा के अनुसार राजा किसी राजदरबारी का ही अतिथि बन सकता था इसलिए उस नवयुवक को राजदरबारी की पदवी भी देनी पड़ी। अब तो उसका उतना ही सम्मान होने लगा जितना किसी राजकुमार का होता था। अभी एक और बात बाकी थी। जिस घर में राजा अतिथि बनकर ठहरेगा उसकी गृहिणी को राजा के मिजाज और पसंद का पता होना चाहिए। इस बात की जानकारी राजकुमारी से अधिक और किसे हो सकती थी? शीघ्र ही नवयुवक से राजकुमारी के विवाह की तैयारियाँ की जाने लगीं।

इस तरह केवल एक वरदान माँगकर उस चतुर नौजवान ने वह सब कुछ एक साथ पा लिया, जो पाँचों ने अलग-अलग माँगा था|


© तरननऊम # स्टोरी# रिटको आप#