प्रकृति की लुका छिपी
खुशनुमा धुप चारों ओर बिखरी हुई है, खिली - खिली सी, आलोक से वातावरण आच्छादित है; वातावरण में कुछ ऐसा भाव है जैसे किसी अपने में ही मगन खेलते हुए शिशु के चेहरे पर हो। सब आल्हादकारी है, फिलहाल तो!
पर अचानक जैसे शिशु को कुछ याद आ जाये और उसके चेहरे के भाव में बदलाव आ जाए, वातावरण कुछ बदल रहा है ...
धुप सिमट सी गई है, हवा में उड़ता दुपट्टा कोई समेट ले जैसे । आलोक कुछ बुझता सा जा रहा है, प्रकाश योजना का मानों कोई दिव्य प्रयोग हो, अचानक शीतल बयार बहने लगी है , पत्तों की सरसराहट , मंद रोशनी वातावरण को रहस्यमय बना रहे हैं; आसमान में...