स्टेशन पहुंचने से पहले ट्रेन खुल चुकी थी
स्टेशन पहुँचने से पहले ट्रेन खुल चुकी थी
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बचपन में हमसे पढ़े - लिखे बड़े लोग अक्सर इंग्लिश ट्रांसलेशन पूछ लिया जाया करते थे और एक - आध तो मानो जैसे हमारी नियति में ही लिखी थी - "मेरे स्टेशन पहुँचने से पहले ट्रेन खुल चुकी थी " । " डॉक्टर आने से पहले रोगी मर चुका था "। इसके ट्रांसलेशन की आड़ में उन दिनों चिकित्सा सुविधा की दुर्गति को बार - बार याद दिला दी जाती रही थी और आज भी यह इतना ही प्रासंगिक है। बड़ी दुविधा थी उन दिनों । अब सचमुच ट्रेन जा चुकी है । अब ट्रांसलेशन पूछने वालों में से अधिकांश समय से पहले ही स्टेशन पहुंचकर ट्रेन पकड़कर अनंत यात्रा को जा चुके हैं । कुछ लोग तो स्पेलिंग पूछने को ही अपना कर्तव्य जान सबसे कोई न कोई स्पेलिंग पूछ लिया करते थे । स्पेलिंग पूछे जाने और न बता पाने की लाज अब खो चुकी है । एक छोटी सी भार्गव की डिक्शनरी घर - घर अपनी मौजूदगी से यह बता दिया करती कि यहां भी लोग अंगरेजी के कदरदान हैं और अब वो डिक्शनरी भी ट्रेन पकड़ समय से पहले जाने कहां जाकर खो गई है । डिक्शनरी तक को याद करके अंगरेजी को धूल चटा देने का सामर्थ्य हम बिहारियों को खूब अच्छी तरह आता था । अब सबकुछ गुगलमय हो चुका है , अबकुछ ऑटो - करेक्ट हो जाता है । अब कोई पूछने वाला नहीं और बताने वाला भी नहीं ।...
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बचपन में हमसे पढ़े - लिखे बड़े लोग अक्सर इंग्लिश ट्रांसलेशन पूछ लिया जाया करते थे और एक - आध तो मानो जैसे हमारी नियति में ही लिखी थी - "मेरे स्टेशन पहुँचने से पहले ट्रेन खुल चुकी थी " । " डॉक्टर आने से पहले रोगी मर चुका था "। इसके ट्रांसलेशन की आड़ में उन दिनों चिकित्सा सुविधा की दुर्गति को बार - बार याद दिला दी जाती रही थी और आज भी यह इतना ही प्रासंगिक है। बड़ी दुविधा थी उन दिनों । अब सचमुच ट्रेन जा चुकी है । अब ट्रांसलेशन पूछने वालों में से अधिकांश समय से पहले ही स्टेशन पहुंचकर ट्रेन पकड़कर अनंत यात्रा को जा चुके हैं । कुछ लोग तो स्पेलिंग पूछने को ही अपना कर्तव्य जान सबसे कोई न कोई स्पेलिंग पूछ लिया करते थे । स्पेलिंग पूछे जाने और न बता पाने की लाज अब खो चुकी है । एक छोटी सी भार्गव की डिक्शनरी घर - घर अपनी मौजूदगी से यह बता दिया करती कि यहां भी लोग अंगरेजी के कदरदान हैं और अब वो डिक्शनरी भी ट्रेन पकड़ समय से पहले जाने कहां जाकर खो गई है । डिक्शनरी तक को याद करके अंगरेजी को धूल चटा देने का सामर्थ्य हम बिहारियों को खूब अच्छी तरह आता था । अब सबकुछ गुगलमय हो चुका है , अबकुछ ऑटो - करेक्ट हो जाता है । अब कोई पूछने वाला नहीं और बताने वाला भी नहीं ।...