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सख्त लौंडा
सख्त लौंडा वह नहीं जो हर जगह पिघल जाए ,सख्त लौंडा तो वह है जहां पर पिघलना हो वहीं पर पिघले, कहना बड़ा आसान होता है ,पर अपने अल्फाजों को बयां करना बड़ा अलग होता है ,कहने को तो बहुत कुछ होता है पर अक्सर जमाने ने ,उसके अल्फाजों को खामोश कर देता है ,दिखता तो बहुत है वह सख्त लौंडा है ,पर अंदर ही अंदर वह खुद से लड़ता रहता है ,जमाने को तो बस हंसता मुस्कुराता चेहरा दिखता है ,पर अक्सर हंसते मुस्कुराते चेहरे के पीछे बेबसी और खामोशी का आलम होता है ,सख्त लौंडा जमाने से कंधे से कंधे मिलाकर चलता है मगर उसके कंधे से कंधा देना के लिए कोई नहीं होता है ,जमाने में अक्सर अकेले ही लड़ना होता है ,सख्त लौंडा जीवन के हर एक क्षण में अपनी एक अलग परीक्षा को नया आयाम देता है, बदलना चाहता है वह खुद के साथ इस जमाने को पर जमाना जमाने ने उसे खुद को बदल देता है ,अपने हर अल्फाज अपनी खामोशी को आलम को बिखेरता है।