भाव शब्द बंधन
फिर काफिले चलने लगे वो जो सदियों से चलते चले आ रहे हैं
चल रहे हैं आज भी आकर तन्हाइयों में मेरी उतर
मेरे दिल को फिर इक बिसात सा सजाने लगे है़
दिवानगीयों से भरी वो बातें दोहराती चलने लगी है रूह मेरी क्यों
फिर उन्हीं मजलिशो की धड़कनों केंं अफसानों को बार बार दोहराती हैं
मेरे जानने समझने की सारी कोशिशें हार थक जाती हैं और मेरा वजूद खुद को किसी कठपुतले
सा महसूस करने लगता था
टिसते...
चल रहे हैं आज भी आकर तन्हाइयों में मेरी उतर
मेरे दिल को फिर इक बिसात सा सजाने लगे है़
दिवानगीयों से भरी वो बातें दोहराती चलने लगी है रूह मेरी क्यों
फिर उन्हीं मजलिशो की धड़कनों केंं अफसानों को बार बार दोहराती हैं
मेरे जानने समझने की सारी कोशिशें हार थक जाती हैं और मेरा वजूद खुद को किसी कठपुतले
सा महसूस करने लगता था
टिसते...