खिड़की के बाहर का खेल
अरे यार! कहानी पढ़ते-पढ़ते कब दो बज गए,
पता ही नहीं चला।
अयांश ने अपनी किताब बंद कर अपने तकिए के बगल में रखना चाहा क्योंकि उसे किताब को बेड पर सिरहाने रख कर सोने की आदत थी।
अयांश का कमरा हल्की पीली रोशनी में डूबा हुआ था। चारों ओर सन्नाटा था, बस घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। बाहर काले बादलों से ढकी रात और भी डरावनी...
पता ही नहीं चला।
अयांश ने अपनी किताब बंद कर अपने तकिए के बगल में रखना चाहा क्योंकि उसे किताब को बेड पर सिरहाने रख कर सोने की आदत थी।
अयांश का कमरा हल्की पीली रोशनी में डूबा हुआ था। चारों ओर सन्नाटा था, बस घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी। बाहर काले बादलों से ढकी रात और भी डरावनी...