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हमारे बचपन के बो दिन
बो भी क्या दिन थे जो आज हमारे जहन में याद बनकर रहते हैं
क्या बचपन था क्या खेल खिलोने थे
उस समय इतनी सुख सुविधा नहीं थी लेकिन फिर भी उन चीजों का भी एक अलग आनंद था
गांव में उस समय लाइट नहीं हुआ करती थी
लाइट के अभाव के कारण हम लोग बचपन में कांच की बोतलों में मिट्टी का तेल भरकर रात के वक्त उसी के उजाले में पढ़ा करते थे
फिर कुछ समय बाद लैंप के उजाले में पढ़ने लगे
फिर उसके बाद इमरजेंसी से पढ़ा करते थे
आखिर में लाइट की भी गांव में व्यवस्था हो गई जिससे हर घर में लाइट जलने लगी
उस समय टीवी चलाने के लिए लोग घरों की छत पर साइकिल की रिम का एंटीना बनाकर टीवी चलाया करते थे
खेल खिलौने की जगह पर बच्चे छुपन छुपाई
* कबड्डी* पकड़म पकड़ाई * किल्ली डंडा * ताल तलैया * आंख मिचोली * पानी में पत्थर को दूर तक फेंकना इस तरह के खेल हुआ करते थे
आगे आने वाली पीढ़ी को यह पता भी नहीं होगा कि इस तरह के भी खेल खिलौने हुआ करते थे
और पहले लोग कांच की डिब्बी से भी पढ़ा करते थे
पहले के बच्चों को उनकी मां जो कुछ भी खाने को दिया करती थी वह सब कुछ बड़े प्रेम से खा लिया करते थे
अगर खाने में नखरे करते थे तो मां के हाथ से मार खाया करते थे
लेकिन आज के समय के बच्चों के नखरे ही अलग है
लेकिन उनके नखरो को उनके मां-बाप बड़े शौक से उठाते है
स्कूल जाने से पहले उनकी पसंद का ही नाश्ता बना कर उनके टिपिन में पैक करा जाता है
खेलने के लिए हजारों खिलौने हो जाते हैं
और हमारे बचपन के समय एक खिलौना भी बड़ी मुश्किल से मिल पाता था
आज के बच्चों के लिए एक गोदरेज में कपड़े उन्हीं के होते हैं
एक जूते वाले स्टैंड में जूते केवल उन्हीं के रहते हैं
सोने के लिए उनका एक अलग रूम होता है
पढ़ने के लिए एक अलग रूम होता है
कितनी सारी सुख सुविधा दी जाती है
हमारे बचपन में तो हमें हर चीज में एडजस्ट करना पड़ता था
अगर हमसे बड़ा कोई भाई बहन हो तो हमें अपने बड़े भाई बहन के कॉपी किताबें और किताबों से ही काम चलाना पड़ता था
ऐसे होते थे पहले के बचपन ।।
© Mamta