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पुनर्विवाह
एक समय की बात है शीतलपुर नामक गाँव में दो मित्र रहा करते थे दोनों में घनिष्ट मित्रता थी एक का रमेश था और दूसरे का नाम नरेश था, लेकिन नरेश का घर शहर में था नरेश निजी काम की वजह से गाँव रुक जाया करता था. तभी उसकी मुलाक़ात रमेश से हुईं और दोनों में मित्रता इतनी घनिष्ट हो गई की रमेश ने अपनी आठ वर्षीय बेटी (गायत्री ) का विवाह नरेश के बेटे ( सिद्धार्थ) से कर दिया था.

अभी दोनों बच्चे नाबालिक ही थे की दोनों की शादी बचपन में ही करवा दी पर ससुराल गायत्री को विदा ना किया,सिद्धार्थ के पिता ने कहाँ की गायत्री जब 18वर्षीय की हो जाएगी तब उसे सिद्धार्थ खुद डोली में बिठा कर ले जायेगा.

कुछ महीने क्या बीत गए, साँप के काटने से सिद्धार्थ की मृत्यु हो गई,
इधर मातम छाया हुआ है लेकिन गायत्री को बाली उम्र में क्या पता
की उसका पती मर गया है. वो हश रही आँगन में खेल रही, इधर उसके रंग बिरंगे से कपड़ो को उतरवा कर सादे लिवाज पहना दिए जाते, उसकी चोटी खोल कर मुड़वा दिए जाते,सब श्रृंगार की निसानी उतरवा दी जाती तो गायत्री कहती है की माँ मुझे लाल रंग के कपड़े बहुत पसंद है तुम मुझे हर बार ये सादे लिबाज़ क्यों पहना देती हो,
मेरी सारी सहेलिया रंग बिरंगी कपड़े पहनती पर मैं केवल एक ही रंग क्यों पहनती हूँ.. मैं इन सब से अलग हूँ क्या ?

तभी कुछ वर्ष गुज़र जाते है इधर गायत्री 18वर्ष की हो जाती है इसके ससुराल वाले आते है उसे ले जाने को पर गायत्री जो है समझ नहीं पाती की हो क्या रहा क्योंकि ना ही दूल्हा था उसके साथ ना ही बाराती और उसकी लाल जोड़े पहने थी तब उसकी माँ कहती है तुम्हारी शादी बचपन में हो गई थी इनके बेटे सिद्धार्थ से जो मर गया तुम उसकी विधवा हो इसलिए तुम्हे रंग बिरंगे कपड़े नहीं देती थी.
ये तुम्हारे ससुर जी है, तुम्हे लेने को आये तुम्हे ससुराल लेने को आये है.गायत्री तब फूट फूट कर रोने लगती है उसके लाल जोड़े का अरमान कहीं बिखर सा जाता है.

वहाँ जाते ही साँस की जली कटी सुनती है और उसे दोषी ठहराया जाता की इसने ही मेरे बेटे को मार दिया इतने छोटे से उम्र में वो सब देख लेती है तभी उसका देवर को शादी होती है तो उसे एक देवरानी के रूप में बहन मिल जाती उस से वो बोलती खेलती और ख़ुश रहा करती थी, एक दिन जब उसका बच्चा होने वाला होता है तो लड़के को जन्म देते ही उसकी देवरानी का देहांत हो जाता है पुरे घर में मातम का माहौल छाया रहता है.

इधर गायत्री देवरानी के बच्चे को एक माँ का प्यार देती और अपना स्तन का दूध भी पिलाती मानों उसे दुनियाँ की सारी खुशियाँ मिल गई हो, ऐसा देख उसके साँस ससुर ने कहाँ की गायत्री तुम्हारे जैसी माँ और पत्नी और बहु हमें कहाँ मिलेगी, इतने दिन जो भी भला बुरा कहाँ माफ़ करना तुम देवी हो और मेरे घर की लाज रख लो. तब उन्हें समझ आया की पुनर्विवाह कोई अभिशाप नहीं है बल्कि एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत है.तुम अनाथ बच्चे का सहारा बन जाओ.

गायत्री को उसके साँस ने वो लाल जोड़ा ला कर गायत्री के हाथों में रख दिया. उस जोड़े को देख उसके आँखों से आँसू ना ठहर रहे थे.
उसे समझ ना आ रहा था वो क्या करे फिर उसने परिवार एवं बच्चे की ख़ातिर सम्झौता कर लिया देवर से पुनर्विवाह करने को तैयार हो गई इधर साँस ससुर भी ख़ुश हो गए.
और बच्चे को माँ मिल गई गायत्री को उसका लाल जोड़े का सपना भी पूरा हो गया उसकी सारी खुशियाँ ईश्वर ने वापस लौटा दी.

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