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एक महामारी ऐसी भी

"महामारी" यह शब्द सुनते ही बिजली के तरंगों की भांति हमारे दिमाग़ में विचारों की रेस शुरू हो जाती है । किसी को किसी भयानक बिमारी के बाद का दृश्य नज़र आता है तो किसी को आपदा के बाद ज़मीन पर बिछी लाशें।
कैसा लगेगा सुनकर अगर मैं ऐसा कहूं कि एक ऐसी ही महामारी आज हम ९९% लोगों के अंदर पनप रही है और वही महामारी उनके स्वास्थय ,मान - सम्मान , विचारधारा , आत्मविश्वास, धन - दौलत सभी
मार्गों के बीच इकलौते अवरुद्ध का कारण है ।

अजीब लगना जायज़ है । शायद आप सब यह पड़कर मुझपर ज़ोर से हस सकते हैं लेकिन मैं फ़िर भी १०१% विश्वास के साथ हर बार यही कहूंगी कि आप और सफ़लता के बीच अगर कुछ रुकावट का कारण है तो वो सिर्फ़ आपके अंदर पनप रही यह महामारी जिस से आप शायद अवगत तो हैं लेकिन उसे एक महामारी के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं हैं ।
जी हां.... ,
और आपकी यह महामारी कुछ और नहीं बल्कि आपके अंदर पनप रहा आपका भय, आपके अंदर की घबराहट है ।

आप इस बात से अपरिचित हो सकते हैं लेकिन अंजान नहीं कि "व्यर्थ का पनप रहा भय आपके अंदर भ्रम पैदा करता है।"...