जाहिल story by Rajeev Ranjan
जाहिल story by Rajeev Ranjan
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सोचता हूं नैतिकता क्या है ? क्या नैतिकता सिर्फ किताबी ज्ञान का पराकाष्ठा है या मानवीय संस्कार की मूल्य पोध और ध्येय आचरण का वैचारिक समझ , या सिर्फ उपदेश मात्र सदाचारी शब्द । आपको लग रहा होगा भला मैं सीधे आपकों कहानी कहने के बजाय ये अतरिक्त में नैतिकता विषय के थीसिस पे विर्मश क्यों कर रहा हूं ।
असल में ये सवाल मेरा नही है ये सवाल इस कहानी के नायक द्वारा इस दुनिया के तमाम सारे विद्वान और आदर्श आचार व्यवहार का समझ रखने लोगों से मूकता से पूछा जा रहा है ??
बर्बरता शब्द के इजाद के पिछे भी शायद ऐसा ही सुर्ख मंजर रहा होगा जैसा आज से कुछ साल पहले एक अंधेरेबंद कमरे में भूख - प्यास और डंडे के मार से उधेड़ दिए गए जिस्मों के पीड़ा से कराह और तड़प रहे 16 वर्षीय एक जाहिल का था ।
जाहिल ??? हां जाहिल ही तो था वो दुनिया के नजर में ..
सिर्फ मैं ही उसे जाहिल कहां कह रहा हूं .. उसके हद तक की सारी दुनिया उसे यही कहा करती थी , इतना उसे उसकी हरकतों पे जाहिल कहा गया था की उसका नाम भी अब सोनू के जगह जाहिल हो गया था । हमेशा कमबख्त बेमतलब गैर जरूरी काम करता फिरता ... कभी बारिश के पानी में तैरते टेडपॉल के साथ खेलता तो कभी , चारा खाती किसी गाय - बछड़े को उसके रोएदार मुलायम सर पे हाथ फिराकर दुलार रहा होता, पूरे स्कूल मोहल्ले में उसका एक भी दोस्त नही था, और इसका उसे मलाल भी नही था उसे तो प्रकृति और जानवरों का सोहबत भाता था, दिनेश सर को छोड़कर उसके कक्षा के शायद ही कोई ऐसा शिक्षक होंगे जो जाहिल उर्फ सोनू को जरा सा भी पसंद करता हो
लेकिन दिनेश सर बाकी शिक्षकों के मुकाबले बिलकुल भिन्न थे।
जहां सारे शिक्षक के विचाधारा का रेलगाड़ी सोनू का "कुछ नही हो सकता है" स्टेशन पे रुकती थी वहीं दिनेश सर सोनू को सुनहरा भविष्य का ख़्वाब दिखाते थे और तरह -तरह के क्रिया...
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सोचता हूं नैतिकता क्या है ? क्या नैतिकता सिर्फ किताबी ज्ञान का पराकाष्ठा है या मानवीय संस्कार की मूल्य पोध और ध्येय आचरण का वैचारिक समझ , या सिर्फ उपदेश मात्र सदाचारी शब्द । आपको लग रहा होगा भला मैं सीधे आपकों कहानी कहने के बजाय ये अतरिक्त में नैतिकता विषय के थीसिस पे विर्मश क्यों कर रहा हूं ।
असल में ये सवाल मेरा नही है ये सवाल इस कहानी के नायक द्वारा इस दुनिया के तमाम सारे विद्वान और आदर्श आचार व्यवहार का समझ रखने लोगों से मूकता से पूछा जा रहा है ??
बर्बरता शब्द के इजाद के पिछे भी शायद ऐसा ही सुर्ख मंजर रहा होगा जैसा आज से कुछ साल पहले एक अंधेरेबंद कमरे में भूख - प्यास और डंडे के मार से उधेड़ दिए गए जिस्मों के पीड़ा से कराह और तड़प रहे 16 वर्षीय एक जाहिल का था ।
जाहिल ??? हां जाहिल ही तो था वो दुनिया के नजर में ..
सिर्फ मैं ही उसे जाहिल कहां कह रहा हूं .. उसके हद तक की सारी दुनिया उसे यही कहा करती थी , इतना उसे उसकी हरकतों पे जाहिल कहा गया था की उसका नाम भी अब सोनू के जगह जाहिल हो गया था । हमेशा कमबख्त बेमतलब गैर जरूरी काम करता फिरता ... कभी बारिश के पानी में तैरते टेडपॉल के साथ खेलता तो कभी , चारा खाती किसी गाय - बछड़े को उसके रोएदार मुलायम सर पे हाथ फिराकर दुलार रहा होता, पूरे स्कूल मोहल्ले में उसका एक भी दोस्त नही था, और इसका उसे मलाल भी नही था उसे तो प्रकृति और जानवरों का सोहबत भाता था, दिनेश सर को छोड़कर उसके कक्षा के शायद ही कोई ऐसा शिक्षक होंगे जो जाहिल उर्फ सोनू को जरा सा भी पसंद करता हो
लेकिन दिनेश सर बाकी शिक्षकों के मुकाबले बिलकुल भिन्न थे।
जहां सारे शिक्षक के विचाधारा का रेलगाड़ी सोनू का "कुछ नही हो सकता है" स्टेशन पे रुकती थी वहीं दिनेश सर सोनू को सुनहरा भविष्य का ख़्वाब दिखाते थे और तरह -तरह के क्रिया...