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"टूटती हुई मूरत" (लघु कथा) लेखक - मनी मिश्रा
आज फिर पुरे चार साल बाद सुखे पत्ते की सर्सराहट उतपन्न हुई थी तब मुझे एहसास हुआ की वो आई है।"आज कुछ खास है क्या ?नही तो इतने सालों बाद उसे मेरी याद क्यूं आती।मै महसूस कर पा रहा हू ,इस वक़्त वो दबे पाव आकर मेरे सामने खड़ी है और मै तब तक अपनी आँखे नही खोलूंगा जब तक की वो मुझे पुकारेगी नही।"अरे आज ये कैसी उदासी है उसकी आंखो मे जिसे मैं समझ नही पा रहा ,बस सूरज की किरणो में चमकते उसके आँसू मुझे बेचैन कर रहे है।लगता है आज बहुत सी शिकायत उसके पास मुझसे करने को..लेकिन वो कहे तो सही कुछ कहती ही नही।।जानते है मै क्या सोच रहा हूँ कहा रही वो इतने साल,पिछ्ले दफ्फे जब यहा आई थी तो कोई और भी था उसके साथ ,जो मुझसे मिलने नही बस इसके साथ भर आया था ।जब तक वो मेरे सामने खड़ी रही थी...तब तक मैं उसी इन्सान को एकटक देखता रहा था ,जाना पहचाना सा था वो ""ओह्ह क्या करू माफ़ कीजियेगा झूठ बोलना मेरी आदत नही....सच तो ये है की मै उस इन्सान को अच्छी तरह से जानता हू "जॉन कहते थे सभी उसे...गूड़विल जॉन।ये भी तो उसे इसी नाम से पुकारती है।
एक बात पुछू..आप ये नही समझ पा रहे है ना की इस औरत से मेरा क्या रिश्ता है ,हाँ इसी औरत से जो मेरी नजरो के सामने सर को झुकाये खड़ी है ये मेरी माँ है "कैरोलिन "।इसी नाम से पुकारता हूँ मै इसे...जाने क्यूं कभी माँ नही कह पाया वैसे मेरा नाम है "माईक ..माईक बेन्जमीन। मै वही माईक...