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वो जौहरी
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कभी सोचा नहीं था कि ये सफर इतनी दूर तक मैं तय कर पाऊंगी लेकिन गिरते, पड़ते, लड़ते और झगड़ते, कब मुझे इनकी राहों से इश्क़ हुआ पता नहीं। बेशक आपकी शिकायतें मुझसे शुरू से रहीं है पर यकीन मनिए आप मेरा कि इन्हीं शिकायतों ने मुझमें जान फूंक डाली है। जो थी मैं वो अब रही नहीं और जो बनना चाहती हूं पता नहीं वो मैं बनूंगी या नहीं।
जो भी हो ये सफर और ये मंजिलें अब मेरी सिर्फ ज़िन्दगी नहीं बल्कि इनसे ही मेरी ज़िन्दगी है। हर दफा ये जताने की जरूरत नहीं है कि मैं आपसे झगड़ कर आपमें ही रहती हूं.... पर ये अलग मसला है कि हवाओं का रुख आजकल मेरे ही खिलाफ है और तभी मेरा चुप रहना ज्यादा मुनासिब है क्यूंकि मेरी बातें दूसरी दिशाओं में गूंज उठती है तो जाहिर सी बात है कि इनके मायने भी बदल जाते होंगे। पर इसका मतलब यह नहीं है कि मैं बदल चुकी हूं। मैं एहसानमंद हूं उन शिकायतों की जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया कि मैं उनसे ही लड़ सकूं और जीत सकूं अपनी बुराइयों से। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह सोना आग में जल कर निखर जाता है, मैं भी तप सकती हूं पर शर्त ये है कि वो जौहरी आप हों।
© Rhycha