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तुलसी दिवस
तुलसी का पौधा पूर्व जन्म में एक कन्या थी
बहुत ही रूपवती गुणवती और थी सतवंती
मर्यादा के भार से झूकी हुई थी
राक्षस कुल में जन्मी थी फिर भी
परम विष्णु भक्त थी
युवती होने पर वृंदा का विवाह संपन्न हुआ
राक्षस कुल के बलशाली जालंधर से
समुद्र से उत्पन्न हुआ था इसलिए
नाम जालंधर हुआ
एक बार राक्षसों और देवताओं में
युद्ध हुआ प्रारम्भ
देवता निरन्तर हार रहे थे
राक्षसों की विजय का नहीं था अंत
देवता विष्णु के धाम पधारे
त्राहि माम् त्राहि माम् त्राहि माम् पुकारे
विष्णु भगवान नहीं रख पाए मान
जो कुछ देवताओं ने कहा
देवताओं ने पुनः विनती की
इसके अतिरिक्त नहीं है कोई और उपाय
विष्णु भगवान विवश हुए जांलधर का रुप बनाया
पहुंचे वृंदा के निकट आये
इधर वृंदा का शील भंग हुआ
उधर जांलधर का अंत हुआ
वृंदा ने विष्णु को श्राप दिया
तुम जाये पत्थर हो जाओ
देवताओं में हाहाकार मचा
विवश वृन्दा ने श्राप वापस लिया
वृंदा पति के साथ सती हुई
उसकी राख से उत्पन्न हुआ एक पौधा
भगवान ने उसका नाम तुलसी रखा
इन्हीं तुलसी जी का प्रति वर्ष २५दिसम्बर को तुलसी दिवस बनाया जाता है


© सरिता अग्रवाल

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