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वो मनहूस रात....
            पल भर के लिये भी नज़्मा ने ये नहीं सोचा था कि वो रात उसकी तक़दीर बदल जाएगी। कितनी ख़ुश थी वो राशिद के साथ। हँसता-खेलता परिवार। दो छोटे-छोटे बच्चे। और क्या चाहिए था उसे। 7 साल के वैवाहिक जीवन में उसे राशिद ने कभी भी शिकायत का कोई मौका नहीं।

       पर इधर चंद महीनों से राशिद कुछ उखड़ा-उखड़ा सा रहने लगा था। उसकी हर बात पर झल्ला जाता था। उस को तो क्या बच्चों को भी टाइम नहीं देता था। उसने अक़्सर ऑफिस से लेट आना शुरू कर दिया। पहले जहाँ वो टूर पर जाना एवॉइड करता था, वहीं अब वो टूर पर जाने के लिए ख़ुश रहता।

         नज़्मा उसे बच्चों को समय देने के लिए टोकती तो झल्ला के कहता, “मैं तुम सब की फ़रमाइशें पूरी करने के लिये नौकरी करूँ या उन्हें समय दूँ।”

       नज़्मा सोचती कि ऐसी कौन सी फ़रमाइश उसने पिछले 7 सालों में की। जो राशिद ने दिया, वही खाया और वही पहना। आहत हुआ था उसका मन। पर उसने ये सोच अपने आप को तसल्ली दी थी कि शायद ऑफिस में काम का बोझ ज्यादा है। तभी राशिद ऐसे झल्ला रहा है।

        पर उसे क्या पता था कि इसकी वजह तो कुछ और ही थी। और वो वज़ह भी जल्दी ही नज़्मा को पता चल गई। वो मनहूस रात, उसकी हँसती -खेलती ज़िंदगी को तबाह कर गयी। उस दिन राशिद  ऑफिस से रात के 12 बजे लौटा था। उसके टोकने पे वो गुस्से से बोला, “अग़र इतनी ही दिक्कत है तो छोड़ क्यों नहीं देती मुझे।”

        “राशिद..…” यह सुनकर नज़्मा गुस्से से बोली।

        “अच्छा..., तुम नहीं छोड़ सकती तो मैं ही तुम्हें तलाक़ दे देता हूँ।” राशिद शांत स्वर में बोला। जैसे वो आज ही फैसला कर के आया था कि सारा क़िस्सा एक बार में ही ख़त्म कर देगा।

       “चुप हो जाओ राशिद। क्या बोल रहे हो तुम। बच्चों की तो सोचो ज़रा।” रोते हुए नज़्मा बोली।

       “हाँ... मैं अब तुम्हारे जैसी ज़ाहिल गंवार के साथ नहीं रहना चाहता। तुम पूछ रह थी न कि मैं इतनी रात तक कहाँ जाता हूँ। और मेरी कमीज़ पर लिपस्टिक का निशान याद है, जिसके लिए तुमने मुझसे उस दिन झगड़ा किया था। उसी का था।” राशिद बेहयाई से बोला।

       “राशिद, बोल दो ये झूट है”, बिलखते हुए नज़्मा बोली।

      “यही सच है नज़्मा। अब मैं लुबना के बिना एक पल को भी नहीं रह सकता।” राशिद ने जवाब दिया।

      लुबना राशिद के ही ऑफिस में काम करती थी। वो 7-8 महीने पहले ट्रांसफर हो कर आई। चुलबुली लुबना कब राशिद के दिल में बस गयी उसे पता ही नहीं चला। और उसके ख़ातिर उसने नज़्मा को तलाक़ देने का फ़ैसला भी कर लिया।

      अंततः तलाक़ के 3 अल्फ़ाज़ों के साथ वह नज़्मा को छोड़ लुबना के यहाँ चला गया। उसके जाने के बाद कुछ देर तो नज़्मा रोती रही। फिर अपने आप को सम्हाल खड़ी हुई। वो राशिद पर निर्भर जरूर थीपर उतनी ही खुद्दार भी थी। उसने तुरंत फैसला किया।

       अगली सुबह अपनी दोस्त जमीला को उसने सारी बतायी। जमीला ने कहा, “नज़्मा, हौसला रख। अल्लाह एक दरवाज़ा बंद करता है तो सैकड़ों दरवाज़े खोलता है। और तेरे पास तो सिलाई औऱ  कशीदेकारी का हुनर है।”

        जमीला की प्रेरणा से नज़्मा ने अपने घर से ही लोगों के कपड़े सिलने का काम शुरू किया। उसके हाथ में सफ़ाई थी। उसके सिले कुर्ते और उसमें की उम्दा कशीदेकारी के कारण वो एक साल में ही अपने शहर में फ़ेमस हो गयी। लोग दूर-दूर से उसके पास सूट सिलवाने के लिए आने लगे।

        घर में जगह कम पड़ी तो उसने किराए पर दुकान ले ली। धीरे-धीरे अपने जैसी बेसहारा औरतों को काम दे उनका सहारा भी बनी। उधर उसके दोनों बच्चे भी बहुत जहीन थे। सरकारी स्कूल में पढ़कर दोनों ने इंटर में टॉप किया। उसके बाद कॉलेज से अच्छे अंकों में डिग्री हासिल की।

         इन सब में कब 20 साल गुज़र गए पता ही नहीं चला। इन बीस सालों में राशिद ने एक बार भी पलटकर नहीं देखा। अलबत्ता लुबना से उसके खुला की उड़ती उड़ती ख़बर नज़्मा को जरूर मिली थी। नज़्मा की दुकान अब नामचीन बुटीक में तब्दील हो गयी थी।

       एक दिन वह अपने बुटीक में काम कर रही थी कि तभी जमीला बाहर से चिल्लाते हुये आयी,  “नज़्मा… अब ये काम करना छोड़, अब तो तेरे आराम करने के दिन। तेरी बेटी आईएएस अधिकारी बन गयी है और बेटा एसएसपी बन जाएगा।”

       तब तक उसके दोनों बच्चे भी मिठाई लेकर वहां पहुंच गए। उसकी बेटी बोली, अम्मी… अब तुम जो भी मांगोगी, घर बैठे मिलेगा।

           नज़्मा बोली, “बेटा, अल्लाह ने आज तुम दोनों के रूप में मुझे सब कुछ तो दे दिया। तो अब और क्या ही मांगू मैं।”
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© Pankaj Bist 'Ruhi'