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विधि का लिखा

एक समय की बात है एक ब्राह्मण का लड़का जो की बहुत बुद्धिमान था।
वह जंगल में जाकर एक ऋषि की सेवा करने लगा ऋषि से उसको अगाध लगाव हो गया और ऋषि भी उसको अपने पुत्र की तरह मानने लगे।
ऋषि को कोई संतान नहीं थी ब्राम्हण का पुत्र अपने गुरु और गुरु माता की सेवा में समर्पित हो गया।
बहुत साल बीत गया ऋषि की पत्नी गर्भवती हुई इसी समय ऋषि को यात्रा पर जाना हुआ।ऋषि अपने शिष्य पर अपने आश्रम की जिम्मेदारी देकर यात्रा पर चले गए। ऋषि पत्नी को एक पुत्र हुआ बालक को जन्म लिए कुछ ही छड़ बीते हुए थे कि ब्राम्हण देखा की कोई व्यक्ति ऋषि पत्नी और उनके पुत्र के पास जा रहा है। ब्राम्हण ने उसका रास्ता रोका और कहा की आप अंदर नहीं जा सकते।तो वह व्यक्ति बोला मेरा जाना बहुत जरूरी है
मैं बालक का भाग्य लिखने जा रहा हूं मैं भाग्य विधाता ब्रम्हा हूं।
ब्राम्हण ने कहा कि एक शर्त पर आपको जाने दूंगा जब आप हमे ये बताएंगे की बालक के भाग्य में क्या लिखे हो आप ब्रह्मा जी ने कहा ठीक है और जब ब्रम्हा जी बालक का भाग्य लिखकर आए तो ब्राम्हण ने पूछ लिया की अब बताइए क्या लिखा गया ऋषि पुत्र के भाग्य में तो ब्रम्हा जी ने कहा की उसका जीवन दरिद्रता में बीतेगा उसके पास एक बोरी धान और एक गाय के अलावा और कुछ नहीं रहेगा कभी।ये सुनकर ब्राम्हण को बहुत दुःख हुआ और सोचा की इतने महान ऋषि के पुत्र का जीवन दरिद्रता में बीतेगा लेकिन यह बात वो किसी को बता नही सकता था क्योंकि ब्रम्हा जी ने उसको बताया था कि अगर इस बालक का भाग्य तुम किसी को बताए तो तुम्हारे सिर के कई टुकड़े हो जायेंगे।
कुछ माह बाद ऋषि आ गए अपने आश्रम अब वो ब्राम्हण ऋषि से आज्ञा लेकर तपस्या करने चला गया।
बहुत साल व्यतीत हो जाने के बाद वो ब्राम्हण वापस आया तो देखा की ऋषि और उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गए ।ऋषि का पुत्र का विवाह हो गया
और उसके दो बच्चे हैं वो सब एक टूटी झोपड़ी में रहते थे और उनके पास एक बोरी धान था और एक गाय थी वो अपना जीवन बहुत दरिद्रता में बीता रहे थे किसी तरह वो सब अपने पेट का पालन कर पा रहे थे ये देखकर उस ब्राम्हण को बहुत दुःख हुआ।
वो ब्राम्हण ऋषि पुत्र को अपना परिचय दिया और बोला की मैं तुम्हारे पिता का शिष्य हूं और जो कहूंगा तुम्हारे भले के लिए ही कहूंगा क्या तुम मेरी बात मानोगे। ऋषि पुत्र बोला कहिए जरूर मानूंगा तो ब्राम्हण बोला कि तुम ये गाय हाट में बेच दो और धान भी बेच दो जो मुद्रा मिले उससे तुम भूखे को भोजन कराओ और तुम लोग भी उत्सव मनाओ कल के लिए मत सोचो मेरी बात पर यकीन करो ।ऋषि पुत्र को ये बात अच्छी नहीं लगी वो सोचने लगा कि अगर मैं सब बेचडूंगा तो सबका क्या होगा हम चार लोग का पेट कैसे भरेगा यही सब बात वह अपनी पत्नी को बताया तो उसकी पत्नी बोली कि ये पिता जी के शिष्य हैं बेवजह तो ऐसा कहेंगे नहीं
वो जो कहते है वैसा कर दीजिए कल का कल देखेंगे जो भाग्य में होगा वो होगा ही।
ऋषिपुत्र गाय और धन बेच दिया और जो मुद्रा बाजार से मिली उससे ढेर सारा सामान खरीदा और उत्सव की तरह सबको भोजन करवाया और वो लोग भी भोजन पेट भर किए और सो गए।
आधी रात को ऋषिपूत्र उठ गया और सोचने लगा कि कल क्या करूंगा
बच्चो को भूखा कैसे रखूंगा यही सब सोचकर बाहर आया सोचा उस ब्राम्हण से पूछूं की अब क्या करूं।
वो बाहर आया और देखा कि उसके दरवाजे पर एक बोरी धान रखा है और बाहर गाय बोल रही है उसको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं आ रहा था।फिर वो ब्राम्हण के पास गया और बताया कि उसका धन और गाय उसके पास आ गए अब ब्राह्मण उसको समझाया कि तुम रोज सब बेचकर खूब अच्छी ज़िंदगी बिताओ कल के लिए कुछ कभी मत रखना अगर तुम कल के लिए धन का संचय करना सुरु करोगे तो तुम हमेशा दरिद्रता में ही जीवन व्यतीत करोगे इसलिए हमेशा याद रखना कि जो है बस आज है न बीता हुआ कल है न आने वाला कल है तुम हमेशा आज में जीओ और खुश रहो ऐसा समझकर वो ब्राम्हण वहां से निश्चिंत होकर चला गया।
एक दिन ब्राम्हण तपस्या कर रहा था तो देखा कि एक दिव्य पुरुष हाथ में गाय पकड़कर और सिर पर धन की बोरी रखकर कहीं जा रहा था ।
वह ब्राम्हण आया और हाथ जोड़कर बोला महाशय आप कौन हो और कहां जा रहे हो तो ब्रह्मा जी ने कहा मैं भाग्यविधाता हूं और उस ऋषिपुत् को वोही देने जा रहा हूं जो उसके भाग्य में लिखा है ।
और तुम वोही घाघ मनुष्य हो जो मेरे लिखे दरिद्रता को उसके लिए वरदान बना दिए ।मैं जो लिखा हूं वो हमेशा उसको मुझे देना ही होगा क्योंकि भाग्य में विधाता जो लिखते है वो मिलाता ही है ये तो मनुष्य पर निर्भर है कि वो उसे कैसे जीता है।।


© Meri kalam se

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