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मधु श्रावणी
मधु श्रावणी जीवन में सिर्फ एक ही बार मनाई जाती हैं।
और इन दिनों नवविवाहित कन्याएं शुद्ध शाकाहारी बिना नमक का भोजन लगातार 15 दिनों तक करती है।
और इतना मुश्किल त्योहार वह अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। मधुश्रावणी में मूल रूप से शंकर पार्वती और विषहरा माता की पूजा की जाती है। मधुश्रावणी पूजा में बासी फूल और विल्व पत्र चढ़ाने का भी विशेष महत्व होता है।इस बर्ष मधुश्रावणी पूजा 26 जुलाई से शुरू होगी तथा 7 अगस्त को संपन्न होगी। मधु श्रावणी पूजा की शुरुआत सावन मास की कृष्ण पक्ष पंचमी तिथी से होती हैं।(नाग पंचमी को मौना पंचमी भी कहते हैं) जबकि समापन शुक्ल पक्ष की तृतीया को टेमी दागने के साथ होती है।
पहले और आखिरी दिन वृहत् पूजा होती है।तथा बीच के सभी दिन गौरी पूजन,विषहरा पूजा, और फूल छींटने के साथ ही होती है कथा। मधुश्रावणी पूजा में पुरोहित का काम महिला करती है।
जिन्हें हम पुरोहताईन कहते हैं। वही पूजा विधि बताती है तथा वही कथा भी कहती हैं। वर पक्ष से कन्या और उनके पूरे परिवार के साथ पुरहोताइन के लिए भी साड़ी वगैरह भेजा जाता है।
कन्या के लिए तो खाने पीने की वस्तुओं से लेकर साड़ी कपड़े गहने तथा उनके इस्तेमाल में आने वाली हर एक छोटी बड़ी वस्तुएं ससुराल से ही भेजी जाती है।
मधुश्रावणी मिथिलांचल का लोक पर्व है।जो मूल रूप से बिहार में मनाया जाता।आज सुबह से ही यहां घर आंगन में बड़ी हलचल मची हैं। मधुश्रावणी लोक पर्व जो आज से शुरू हो रहीं हैं।
मिथिलावासी बड़े हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनातें हैं।
नवविवाहित कन्याएं तो सुबह से ही अपने साज-श्रृंगार में लगी रहती है ।सावन मास में मधुश्रावनी पूजा होती हैं।नाग पंचमी के दिन से ही शुरू होती हैं।इस दिन नीम,दही और खीर खाने का भी रिवाज हैं।
बिषहारा और शिव पार्वती की पूजा शुरू होती है और यह पूजा 11 से 15 दिनों तक चलती हैं।हर साल अलग होती हैं अर्थात कम से कम ग्यारह और ज्यादा से ज्यादा पंद्रह दिनों तक पूजा चलती है ।
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