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रिश्तों में खटास (भाग ४)
अदालत का फ़ैसला सुशीला के पक्ष में ही हुआ।अदालत ने पति को बच्चों की परवरिश के लिए सुशीला को पाँच लाख देने का आदेश दिया। शर्मा जी ने अपना मकान बेच कर बहू को पैसे दिये और ख़ुद बेटे के साथ अपने पुश्तैनी मकान मे चले गये । अब सुशीला हमारे ही मोहल्ले में किराय के मकान में रहने लगी। अपने पुत्रों को पढ़ा लिखा कर क़ाबिल बनाना ही उसका लक्ष्य बन गया। स्कूल मे पढ़ाने के अलावा घर पर भी बच्चों को पढ़ाती ,रेडियों स्टेशन पर कार्यक्रम देती। मोहल्ले वाले भी सुख -दुख में उसके साथ खड़े रहते। पाण्डेय जी ने तो उसके पिता की भूमिका निभाई वे बच्चों के नाना बन गए। सुशीला की मेहनत रंग लाई दोनों बेटों का दाख़िला मेडिकल में हो गया। पूरे मोहल्ले में जश्न का माहौल था। तभी किसी के पुकारने से मेरा ध्यान भंग हुआ। देखा माँ कमरे में घुसते हुए कह रही है ,"अभि मैंने तेरे लिए लड्डू बनाए है, खा लेना "। "नौकरी के साथ -साथ सेहत का भी ख़याल रखा कर"। मुस्कुरा कर मैंने माँ का पल्लु पकड़ कर कहा ," माँ तू चल मेरे साथ हैदराबाद , फिर तुझे मेरी चिंता नहीं करनी पड़ेगी "। माँ ने प्यार भरी नज़रों से देखते हुए कहा ," बच्चे दूर होते है तो माँ को चिंता लगी रहती है, तू अपना तबादला यहीं करा ले"। बहरहाल नौकरी पर तो मुझे जाना ही था, सो दीपावली पर आने का वायदा कर सबको अलविदा कह अपने सफ़र पर निकल पड़ा।

रुचि प जैन