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एक बहाना
बहुत तेज आवाज हुई थी....शायद कुछ टूटा था....हां टूटा था.....और जमीन पर बिखरे पड़े थे कांच के टुकड़े चारो ओर..... वो अपना आंचल संभालते हुए उस आवाज की तरफ तेजी से भागती हुई आती है....वो दरवाजे की ओट पर खड़ी एकटक देख रही थी.....उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था....वो समझने की कोशिश कर रही थी.... कि आखिर उससे गलती क्या हुई..... कि अचानक उसकी आंखें झिलमिलाने लगती है और उसे सब कुछ धुंधला सा दिखने लग जाता है.....उसका चेहरा जर्द पड़ जाता है कि तभी वो अपनी आंखों को बड़े जोर से मीचती है....और फिर सब कुछ साफ हो जाता है..... उसने अपनी आंखों के तूफान को आंखों में ही रोक लिया था.....और जमीन पर बिखरे कांच साफ दिख रहे थे उसे चारो ओर......


वो कुछ समझ नहीं पा रही थी और फिर वो उन कांच के टुकड़ों को अपने हाथों से उठाने लगती है.... कि एक टुकड़ा उसकी उंगली में चुभता है....वो देखती है अपनी उस उंगली को.....और तभी उसमे से कुछ खून की बूंदें रिसने लगती है....और बूंदे जैसे ही जमीन पर गिरती है उसका गला रूंधने लग जाता है....उसके होठ कपकपाने लगते है और उसके शरीर का तापमान बढ़ सा जाता है....उसका चेहरा लाल हो चुका है....और अब वो अपनी आंखों को छलकने से रोक नही पाती है....और पहले उसकी आंखें छलकती है....फिर उसकी चीख निकलती है....और अब वो दहाड़े मार कर रो रही थी और अपने वजूद के साथ अब जमीन पर धाराशाई होकर गिर चुकी थी....वो रो रही थी.....लेकिन उसकी चीखें सुनने के लिए आस_पास कोई नही था....कोई नही था जो उसे चुप कराता....


सच आज मन हल्का हुआ था उसका.... उस बड़े से आलीशान मकान में जहां सुख मिले ऐसी हर चीज मौजूद थी.....जहां सुकून नहीं आराम ही आराम था....जहां उसे समझने वाला कोई नहीं लेकिन उसकी दर्द पर मखमल की पट्टी लगा दी गई थी.....वहां दिल खोल कर रोने का एक बहाना आज उसे मिला था.......


सच ही तो है.....बहुत ऊंची इमारतों के फायदे ये हैं कि इनसे आवाजे चार दीवारों के बाहर नहीं जाती....वो घंटों अपने अस्त व्यस्त कपड़ों में उसी जगह लेटी रहती है और फिर वो उठती है....उसका मन बहुत हल्का हो चुका था....कांच के एक छोटे से टुकड़े का चुभना वो बहाना था उसके लिए..... जिसकी वजह से आज खुलकर रो पाई थी....अब वो खुद को समेटकर उठती है और रोजमर्रा के कामों में लग जाती है....












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