...

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मैं अमिर हूँ
बड़ी सुहानी श्याम थी और सभी रास्ते, चौक
भिड में डूबे थें ।
मैं जल्दी में अपना रास्ता काट रहा था ।
तभी, जैसे ही मैने पहली चौक पार की और
रास्ते की दूसरे ओर बढ़ने की सोच ही रहा था, की कोई अचानक मेरे सामने हसते हूए
आया ।
" पेहचाना ", वाह्यात सूरों में उसने पुछा ।
चेहरेपे एक बेफ़िक्र उदासी भी थी ।
चेहरा कुछ जाना पेहचाना लगा ।
फिर सोचा भिक मांगने वाले सभी एक जैसे ही तो लगतें हैं ।
" नहीं ", मैंने रुखे शब्दों में जवाब दिया ।
लाचारी के सिवाय एक तिरस्कार से भरी
पलभर उसके चेहरें पे चमक उठी और वो'
इन्सान चल दिया ।
मैं उसी आदमी के बारे में सोचता आगे अपनी घर की तरफ़ चल दिया । चेहरा पेहचाना सा तो लग रहा था किंतू दिमाग पर जोर डालने से ये नहीं...