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देश के हालात और हम...!
देश के हालात और हम...!

काल पता नही मन बोहोत अस्वस्थ था। न जाने क्यों ? जब बोहोत सारे खयाल दिमाग मैं एक साथ चलते है ना तब हम समझ नही पाते कि हम आखिर इस जिंदगी से क्या चाहते है। जब ऐसे हजारो खयालो के बारे मैं हम सोचते है तब सबसे पहला सवाल तो यह होता है कि क्या यह खयाल सिर्फ मुझे ही आते है ? या सबके साथ ऐसा होता है ? पर किसीना न किसीको तो बोलना या लिखनाही ही पड़ेगा।
मैं हमेशा से यह सोचती आयी हु की मैं उन मुद्दों पर बात करने की कोशिश करु जिसके बारे मैं कोई सोचना जरूरी नही समझता। जैसे महाराष्ट्र मैं सत्ता स्थापन करते वक्त या आज जो राजस्थान मैं हो रहा है उस पर मुझे एक डरसा लगने लगा है। हाँ मैं यह मानती हूं कि किसीभी राज्य को सही तरीकेसे चलने के लिए वहाँ पर सही लोगोका चुनाव होना जरूरी है। जिन लोगो को हम सब लोकशाही शासन पद्धति से चुनते हैं। पर जिस तरीकेसे यह लोग सत्ता के लिए लड़ रहे है जिस तरीके से रणनीति को एक खेल बनाया जा रहा है उसको देखते हुए तो बस एक ही बात महसूस होती है कि यह लोग सिर्फ सत्ता को आपने हाथ मैं लेना चाहते हैं। जिन्हें जनता से कोई लेना देना नही है। सत्ता यानी पॉवर । यह सब पॉवर के बारे मैं ही सोचते हैं। और लोग पॉवर के लिए कुछ भी करेंगे। इतिहास गवाह है।
अगर आज के समय मैं भारत की बात करे तो हम क्या रहे है इसका अन्दाज लगाया जा सकता है। अगर विश्व के तौरपर हम देखे तो कोरोना अफेक्टेड देशोंके रैंक मैं USA, ब्राज़ील, और तीसरे स्थान पर भारत है। और भारत मैं महाराष्ट्र पहले स्थान पर है। इसका मतलब यह है कि हमारी सरकार और हमारी आरोग्य व्यवस्था इस महामारी से लड़ने मैं असमर्थ है। और इन हालातों मैं भी UGC द्वारा अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा लेने की बात की जा रही हैं। आखिर क्यों....?
वैसे आज सुबह जब आकाशवाणी रेडियो सुन रही थी तो पता चला कि राम मंदिर के भूमिपूजन की कोई खबर चल रही थी। अब हम सब यह क्यों नही समझपा रहे कि देश को मंदिरोंकी , प्रार्थनास्थलों किसी भी तरहके महामानव के विशालकाय पुतलो की आवश्यकता नही है। यह जरूरत है तो सिर्फ हॉस्पिटल, स्कूल और कॉलेज की।
आज सरकारी स्कुलो मैं अच्छी शिक्षा नही मिलती, सरकारी स्कूलों को धिरे धिरे बंद खत्म किया जा रहा है। प्राइवेट स्कूल और कॉलेजो मैं फीस बोहोत ज्यादा होती है जहाँ गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चे नही पढ़ सकते। हमारे शिक्षा का पाठ्यक्रम कुछ ऐसा होता है जिसका कौशल्य से कोई संबंध ही नही होता इसलिए हमारे देश की युवापीढ़ी पढ़ी लिखी बेरोजगार बनती जा रही है। ऐसे हजारो मुद्दोसे हमे सामना करना है पर पता नही कौनसे दुर्गति के और हम कदम बढ़ा रहे है। इतिहास मैं जब भी ऐसी वैष्विक महामारी आयी है तब तब हमेशा ही नए समाज रचना की आवश्यकता महसूस हुई है जो समानता, जाती और धर्मनिरपेक्षता का और एक विकसित समाज का प्रतिनिधित्व करती हो...! और इस के लिए हम सबको मिलकर काम करना पड़ेगा....!
सोनाली.....✍