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राधा कैसे न जले!
केशव की शादी के चार वर्ष निकल गए पर सलोनी के साथ उसका सामंजस्य बनने का नाम ही नहीं ले रहा था। छोटी-छोटी बातों में सलोनी अक्सर बुरा मान जाती। केशव को समझ में नहीं आता कि अपनी संगिनी को कैसे मनाये ?उन दोनों के कॉलेज का साथी ‘निशांत’ सालों बाद उनसे मिलने आया। दोनों ऑफिस के पास ही के रेस्टोरेंट में साथ लंच कर रहे थे। निशांत ने सलोनी से भी मिलने की इच्छा ज़ाहिर की,पर केशव ने बात बदल दिया। इस बात पर उसे संदेह हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है। बहुत पूछने पर केशव ने बताया कि वह खुश नहीं रहती है। बात -बात पर नाराज़ होती है। मुझसे भी खुलकर बात नहीं करती और न ही किसी से मिलना -जुलना चाहती है। आखिर मैं क्या करूँ?”

“कैसे खुश रहेगी?तुम तो अपने परिवार के चहेते हो| चारों ओर तुम्हारा यशगान होता रहता है।उसके व्यक्तित्व को भी उभरने दो। पहले साथ वक़्त बिताते थे न,वैसे ही कुछ निजी समय निकालो| कहीं न कहीं उसे नज़रअंदाज़ कर रहे हो क्यूंकि मैं जिस सलोनी को जानता था, वो बेहद हंसमुख व मिलनसार थी। उसमें आये बदलाव के लिए बस तुम जिम्मेदार हो केशव!”निशांत ने कहा।

ठीक ही तो कह रहा था वह। इस बात पर कभी उसका ध्यान गया ही नहीं। चार बहनों के बाद जन्मे केशव का बचपन अति लाड़-प्यार में बीता था। माँ -बाबा,प्यार से कान्हा बुलाते। बाहर का नाम भी उन्होंने केशव रख दिया था। सांवली सूरत और घुंघराले बालों वाला केशव अति मेधावी और सबों का...