भीख... या... दान...
हर बार की तरह जब कोई बच्चा मासूम सी सूरत लिए...
कभी बस स्टेंड, कभी रेलवे स्टेशन, कभी किसी गली में तो कभी अपने घर के सामने दबी सी आवाज़ में अपने हाथो से इशारा करते हुवे कहता है...
2 रूपये दे दो ना...
कभी कोई अपने हाथ का बर्तन मेरी ओर आगे बढ़ाते हुवे बीना कुछ कुछ बोले मुझे एक जैसे टकटकी बांध कर देखता इस आस के साथ की हम उन्हे कुछ दे देंगे...
कभी कोई बस की खिड़की के कांच को खट खटाते हुवे मेरा ध्यान अपने मोबाईल और अपने साथ में बैठे साथियों से हटा कर उस व्यक्ति को देखने पर मजबूर कर देता है...
खिड़की के बाहर मुझसे अनजान...
कभी बस स्टेंड, कभी रेलवे स्टेशन, कभी किसी गली में तो कभी अपने घर के सामने दबी सी आवाज़ में अपने हाथो से इशारा करते हुवे कहता है...
2 रूपये दे दो ना...
कभी कोई अपने हाथ का बर्तन मेरी ओर आगे बढ़ाते हुवे बीना कुछ कुछ बोले मुझे एक जैसे टकटकी बांध कर देखता इस आस के साथ की हम उन्हे कुछ दे देंगे...
कभी कोई बस की खिड़की के कांच को खट खटाते हुवे मेरा ध्यान अपने मोबाईल और अपने साथ में बैठे साथियों से हटा कर उस व्यक्ति को देखने पर मजबूर कर देता है...
खिड़की के बाहर मुझसे अनजान...