विश्वास मजहब देख कर नहीं आता
राजिक से मेरी मुलाकात एक मीटिंग के दौरान हुई थी।यूं तो हम एक ही शहर के रहने वाले थे। कई दफा काम के सिलसिले में हम आमने-सामने भी हुए।मग़र हमारी आपस में कभी ठीक तरह से बात चीत नहीं हुई थी।मग़र आज जब यहां इस नये शहर में अजनबियों के बीच मैंने उसकी मदद की तो उसने मेरे साथ अपनी आपबीती साझा कि..जिसे सुनकर मैं दंग रह गया और अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया । विश्वास मजहब देखकर नहीं आता..........!!
आज फिर वो 11 साल बाद नैनीताल मन्नत पूरी होने पर घंटा बांधने उसी मंदिर अपनी पत्नी और बेटे को साथ लेकर जा रहा था। राजिक और तमन्ना एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे। और फिर इन्होंने अपने माता-पिता की अनुमति से विवाह के अटूट बंधन में बंध गए। हंसी खुशी के दिन पंख लगा कर उड़ने लगे और देखते-देखते 4 साल गुजर गए।इन चार सालों...
आज फिर वो 11 साल बाद नैनीताल मन्नत पूरी होने पर घंटा बांधने उसी मंदिर अपनी पत्नी और बेटे को साथ लेकर जा रहा था। राजिक और तमन्ना एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे। और फिर इन्होंने अपने माता-पिता की अनुमति से विवाह के अटूट बंधन में बंध गए। हंसी खुशी के दिन पंख लगा कर उड़ने लगे और देखते-देखते 4 साल गुजर गए।इन चार सालों...