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कलीकुर्सी
#कालीकुर्सी
भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी नंद ने उस कुर्सी की तरफ़ इशारा कर कहा यह वाली क्या, सरिता ने कहा जी हाँ यह वाली आप यह वाली कुर्सी का दाम बात दीजिये मैं यही खरीदूँगी| नंद उसे कुर्सी दे देता है और पैसे ले लेता है | सरिता, सरिता वही लड़की थी जो नंद को बहुत पसंद थी स्कूल के दिनों से ही वि सरिता को बहुत चाहता था पर उसने कभी उससे अपने दिल की कही ही नहीं| स्कूल के दिनों में सबको मालूम था की नंद सरिता को मन ही मन चाहने लगा है, नंद का एक दोस्त था एक दम जिगरी दोस्त | उनकी दोस्ती की लोग मिसाल देते थे| पर उनकी दोस्ती भी टूटी तो सिर्फ़ सरिता की को एक चिट्ठी देने से, स्कूल का आखिरी दिन और नंद ने यह फेसला कर लिया था की वो सरिता को अपने दिल की बात बताकर ही रहेगा |उसने एक चिट्ठी लिखी और अपने दोस्त को देकर कहा यह चिट्ठी वो सरिता को दे दे और कहे यह चिट्ठी नंद ने दी है | वो सरिता के पास जाकर उसको चिट्ठी देकर कहने लगा यह तुम्हारे लिए है उसने चिट्ठी पढ़ी उसमें नंद का नाम नहीं लिखा था उसने नंद के दोस्त से पूछा क्या यह आपने लिखी है उसने हाँ में सीर हिला दिया और उसी वक़्त सरिता ने उसे गले लगा लिया और सारे स्कूल के सामने अपने प्यार का इज़हार कर दिया| जब नंद को पता चला की क्या हुआ है तब वो टूट गया और अपने दोस्त से लड़ने लगा उसके दोस्त ने उसे बताया की नंद सरिता से प्यार करता था पर सरिता नंद से नहीं नंद के दोस्त से प्यार करती थी| उस दिन के बाद से नंद ने कभी अपने दोस्त से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं करी और उससे दोस्ती तोड़ ली| नंद की ज़िंदगी में एक दोस्त और उसके प्यार के जाने के बाद बहुत मुश्किल आई कहीं भी उसे नोकरी नहीं मिले फिर कुछ साल बाद उसे एक दुकान में नोकरी मिल गई और आज दास साल बाद उसकी मुलाकात सरिता से हुई वो तो उसे पहचान गया पर वो उसे भूल चुकी थी|
© alone