...

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क्या सही
कभी कभी लगता है जाना मुश्किल है पर आना आसान। फिर कभी लगता है वापस आना मुश्किल हैं और जाना आसान।
हम कैसे तय करें क्या
मुश्किल।
ये तो सब नज़रिये की बात है हालात की, सहूलियत की, भावनाओं की। किसी के लिए जाना मुश्किल नहीं होता। और किसी के लिए वापस आना मुश्किल हो जाता है।
मेरे लिए आना आसान था, कोई धागा नही था जो बांध सके मुझे।
और उसके लिए जाना आसान क्योंकि मेरे बांधे धागें उन धागों से कच्चे निकले जो उसने किसी और के साथ बांध रखे थे।
फिर मुझे लगता हैं,
मेरा जाना भी तो कितना मुश्किल था मेरे कदम ही नहीं बढ़े। ना मन बढ़ा।
न दम बढ़ा । और फिर सब बेदम हो गया।
और वो चाहें वो उसके लिये भी तो आना कितना मुश्किल होगा अगर चाहें भी तो,कदम बढ़ भी जाये तो पत्थर हो जाते होंगें।
एक बार जी चाह भी ले तो
साँसे जम जाती होंगीं।
नज़रे उठकर रास्ता ढूंढे भी पर काँप के थम जाती होंगी।
बात सिर्फ चाह की है
जहाँ चाह होती है वहाँ रास्ते न होते हुए भी बन जाते हैं
सब आसान हो जाता हैं
क्या सही किसको पता।
मेरी चाह जहाँ थी मैं निकल गयी।
और जहाँ हूँ सही हूँ।
© maniemo