...

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दूरी
हाथ खींच कर ले गई थी उन्हें छत पर और दिखा दिया था छत से चांद की दुरी जब कल दीदी पुछ रही थी यहां से तुम्हारे शहर की दूरी.. और इसके जवाब में मेरी आँखों के बिलखते स्वप्न तुम तक पहुंच गए थे शायद! यही वजह है जो भौगोलिक दूरी की इस अनिश्चितता के बीच मुझे रात सदैव प्रिय रही है क्यों की वह हमारे बीच की दुरी को आँख बंद करते ही एक ही झटके में कम कर देती है.. अजीब है ना... हमारा कोई अति प्रिय हमारे बिना जी सकता है यह छोटा सा सत्य जीवन का विषम दुःख है और कटु सत्य भी!! लेकिन क्या हो सकता है बताओ.. हां यह सच है की मुझे ज्योतिष शास्त्र में कोई दिलचस्पी नहीं पर गौर से देखती रहती हुं अपनी हथेलियां जिसमें कहीं एक महिम्न रेखा मिल जाए जो तुम्हारे और मेरे बीच कि जन्मों की दुरी को कम कर दें.... आह...यह दुरी तुम्हें पता है? तुम्हारे बग़ैर मैं अहिल्या हूं जिसे अपने राम के वनवास खत्म होने की प्रतिक्षा है..और ये कुछ युगों की कल्पना हैं जिसके लिए मैंने जीवन की उलटी गिनती शुरू की है जहां मुझे अलविदा कहकर मुझसे मिलने की तुम कामना करो.. पर सुनो... अगले जन्म मैं तुमसे प्रेयसी नहीं भिक्षुणी बनकर तुमसे कोसों दूर मिलूंगी, इस जन्म जो पांव पांव मैंने तुम तक दूरी काटी है तुम भी अपने पांव पांव काटना इतनी दुरी और मेरी झोली में डाल देना सदा के लिए मुझसे मिल जाने की इच्छा...क्यों की उस जिजीविषा, उस बोखलाहट और उस तड़प को तुम समझ सको जिसमें किसी देह से उसकी आत्मा की दूरी कई जन्मों तक दूर रहे...!! हां दीदी को तो मैंने हाथ दिखाकर दूरी समजा दी है पर अब भी शाम को छत पर वही चांद... जिसके इक पार मैं खडी हुं और दूसरे छोर पर संसार की सारी भौगौलिक दूरी के केंद्र सी तुम्हारे घर की छत... उफ दुनियां चांद तक पहुँच गई है और तुम हो की.... कब मिलोगे मुझे?? लोग ठीक कहते हैंTo live together happily is the rarest thing in this world...
© Mishty_miss_tea