पहली मुलाकात
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शीर्षक- पहली मुलाकात
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उन दिनों की बात है, जब Yq ऐप के जरिए, एक अजनबी से गुफ्तगू होने लगी थी, पहली दफा कोई शख्स बड़ा अच्छा लगा हालांकि डिजिटल युग के इस दौर में अभी तक हमने एक-दूसरे को देखा नही था, तकरीबन 5 महीने होने को थे अभी भी मोबाइल नंबर तो छोड़ो कोई सोशल मीडिया अकाउंट भी एक्सचेंज नही किया, एक लबें अरसे के बाद आखिर वो दिन आ ही गया था कि हमें एक-दूसरे से रूबरू होना था, हमने एक निश्चित समय तय किया और अपने-अपने शहर से रवाना हो गए वैसे हमारे दिलों में दूरी नही थी पर शहर की सरहदें काफी दूर थी, रात को रवाना हुआ, सुबह हम राजधानी पहुंच गए, पहली दफा इतनी भीड़ देखकर मैं स्तब्ध था, चारों ओर गाड़ियों का शोर , भेड़-बकरियों की तरह लोग कतारों में आवागमन कर रहे थे, इतनी भीड़ में मेरी नजरें उसे तलाश कर रही थी, मन में यही विचार बार-बार आ रहा था कि उसे ठीक से देखा भी नहीं है पता नही पहचान पाऊंगा की नही, कुछ समय बाद देखा एक घबराई सी लड़की, शायद शहर की इस चकाचौंध से वो काफी डर गई थी, और कुछ उसके मन में शंकाएं भी थी एक अजनबी से पहली बार मुलाकात की, क्योंकि जरूरी नही हम जैसा सोचे, हमे जैसा लगे, सामने वाला भी वैसा हो, झूठी इस दुनियां में कुछ भी हो सकता हैं, उसने मुझे देखते ही पहचान लिया, और बोली-
कैसे हो आशु?
मैने भी सकारात्मक स्वीकृति देते हुए प्रतिउत्तर दिया- ठीक है! चित्राशी
इतने बड़े शहर में हम दोनो ही नए थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करें, फिर थोड़ी देर चलने के बाद हम एक पार्क में पहुंच गए , वो मेरे सामने ही बैठी थी और मैं उसे देखने मैं मग्न था, मुझे लग ही नहीं रहा था की मैं उससे पहली दफा मिल रहा हूं ऐसा लग रहा था जैसे हम बरसों से एक दूसरे को जानते है , वो कुछ खाने को लेकर आई थी और मैं अभी व्याकुल था क्योंकि किसी लड़की के इतने पास पहली दफा बैठा था, उसने कोई औपचारिकता ना करते हुए मेरे दाहिने हाथ को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और मुझे अपने हाथों से कुछ खाने को दिया, मैं तो उसके हाथों के स्पर्श से एक दम स्तब्ध था, हृदय की गति तेज हो गई, मेरे चेहरे पर पसीना आ गया, सांसे भी रुक रुक कर आ रही थी, मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और अपने हाथ को उसके हाथ से अलग किया क्योंकि थोड़ी देर और उसके हाथ में रहता तो कुछ भी हो सकता था, खाने के बाद वो पानी पी रही थी उसके अधरों के बीच में पानी की कुछ बूंदे धूप की वजह से उसके लबों की खूबसूरती में चार-चांद लगा रही थी, पार्क में हवा चल रही थी और उसकी जुल्फें बार-बार उसकी आंखों पर आकर उसे परेशान कर रही थी , आखिरकर उसने अपने दोनों हाथों से बालों में लगीं क्लिप को निकालकर लबों में दबाया और फिर बालों को ठीक करने में लगी थी, खुले हुए बाल और ठंडी-ठंडी हवा, मैं तो उसकी खूबसूरती निहारने में ही मग्न था, आशु ! अचानक, मेरा ही नाम सुनने से मेरी तंद्रा टूटी और मैंने बोला- हां जी! तुम्हे लगा था क्या? कभी हमारी मुलाकात भी होगी ? हां! क्यों नहीं, मैने सकारात्मक स्वीकृति दी, अचानक मौसम बहुत खराब हो गया था बारिश की कुछ हल्की-हल्की बूंदे उसके चेहरे पर गिरने लगी, तो उसने बोला- ऐसे तो हम भीग जायेंगे फिर उसने एक पेड़ की ओर इशारा किया, और हम वहां चल गए, बारिश अभी भी हो रही थी, हल्की-हल्की बौछारों में हम भीग रहे थे, उसके लबों पर पानी की कुछ बूंदे गिरने से वो और भी कातिलाना लग रहे थे, अब उसकी आंखों की पलकें भी भीग चुकी थी, बारिश की वजह से उसका पूरा बदन भीग गया था, बिजली की कड़कड़ाहट और ठंडी-ठंडी हवाएं इस और इशारा कर रही थी की मौसम और भी खराब होने वाला है वैसे तो दोपहर का समय था लेकिन सर्दी की वजह से मानो सूरज भी बादलों को ओढ के मस्ती-से सो रहा था, अभी दिन में ही चारों अंधेरा छा गया था, और हवाएं इतनी ठंडी चल रही थी मानो चारों ओर प्राकृतिक ए.सी. लगा हो, वो मेरे पास ही खड़ी थी और इधर-उधर भीगी हुई पलकों से देख रही थी, उसने सबकी नजरों से छुपकर मुझे बाहों में भर लिया मैं तो स्तब्ध था कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करूं, ठंडा-ठंडा महसूस हो रहा था, थोड़ी देर ऐसा लगा की मैं इस लोक में ही नहीं हूं , फिर होश में आया तो पता लगा, और मेरी निद्रा टूटी, इतना उदास हो गया की पूछो मत , दरअसल हुआ ऐसा की मैं घर में ही था, और तकिए को कस कर Hug कर रखा था दोपहर के एक बजने को था, छोटा भाई बार- बार पानी डाल रहा था, जिसकी वजह से तकिया भीग गया था, मुझे लग रहा था की बारिश हो रही है, मैं कब से ख्वाब ही देख रहा था, इसलिए होश में आते ही उदासी छा गई फिर जल्दी से मैने मेरे फोन को देखा तो उसी अजनबी का sms आया हुआ था, और अभी भी 6 महीने के बाद हम दोनों कर रहे है...........
......................इंतजार......................
.................आशीष गौतम..............
© aashurj31
शीर्षक- पहली मुलाकात
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उन दिनों की बात है, जब Yq ऐप के जरिए, एक अजनबी से गुफ्तगू होने लगी थी, पहली दफा कोई शख्स बड़ा अच्छा लगा हालांकि डिजिटल युग के इस दौर में अभी तक हमने एक-दूसरे को देखा नही था, तकरीबन 5 महीने होने को थे अभी भी मोबाइल नंबर तो छोड़ो कोई सोशल मीडिया अकाउंट भी एक्सचेंज नही किया, एक लबें अरसे के बाद आखिर वो दिन आ ही गया था कि हमें एक-दूसरे से रूबरू होना था, हमने एक निश्चित समय तय किया और अपने-अपने शहर से रवाना हो गए वैसे हमारे दिलों में दूरी नही थी पर शहर की सरहदें काफी दूर थी, रात को रवाना हुआ, सुबह हम राजधानी पहुंच गए, पहली दफा इतनी भीड़ देखकर मैं स्तब्ध था, चारों ओर गाड़ियों का शोर , भेड़-बकरियों की तरह लोग कतारों में आवागमन कर रहे थे, इतनी भीड़ में मेरी नजरें उसे तलाश कर रही थी, मन में यही विचार बार-बार आ रहा था कि उसे ठीक से देखा भी नहीं है पता नही पहचान पाऊंगा की नही, कुछ समय बाद देखा एक घबराई सी लड़की, शायद शहर की इस चकाचौंध से वो काफी डर गई थी, और कुछ उसके मन में शंकाएं भी थी एक अजनबी से पहली बार मुलाकात की, क्योंकि जरूरी नही हम जैसा सोचे, हमे जैसा लगे, सामने वाला भी वैसा हो, झूठी इस दुनियां में कुछ भी हो सकता हैं, उसने मुझे देखते ही पहचान लिया, और बोली-
कैसे हो आशु?
मैने भी सकारात्मक स्वीकृति देते हुए प्रतिउत्तर दिया- ठीक है! चित्राशी
इतने बड़े शहर में हम दोनो ही नए थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करें, फिर थोड़ी देर चलने के बाद हम एक पार्क में पहुंच गए , वो मेरे सामने ही बैठी थी और मैं उसे देखने मैं मग्न था, मुझे लग ही नहीं रहा था की मैं उससे पहली दफा मिल रहा हूं ऐसा लग रहा था जैसे हम बरसों से एक दूसरे को जानते है , वो कुछ खाने को लेकर आई थी और मैं अभी व्याकुल था क्योंकि किसी लड़की के इतने पास पहली दफा बैठा था, उसने कोई औपचारिकता ना करते हुए मेरे दाहिने हाथ को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और मुझे अपने हाथों से कुछ खाने को दिया, मैं तो उसके हाथों के स्पर्श से एक दम स्तब्ध था, हृदय की गति तेज हो गई, मेरे चेहरे पर पसीना आ गया, सांसे भी रुक रुक कर आ रही थी, मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और अपने हाथ को उसके हाथ से अलग किया क्योंकि थोड़ी देर और उसके हाथ में रहता तो कुछ भी हो सकता था, खाने के बाद वो पानी पी रही थी उसके अधरों के बीच में पानी की कुछ बूंदे धूप की वजह से उसके लबों की खूबसूरती में चार-चांद लगा रही थी, पार्क में हवा चल रही थी और उसकी जुल्फें बार-बार उसकी आंखों पर आकर उसे परेशान कर रही थी , आखिरकर उसने अपने दोनों हाथों से बालों में लगीं क्लिप को निकालकर लबों में दबाया और फिर बालों को ठीक करने में लगी थी, खुले हुए बाल और ठंडी-ठंडी हवा, मैं तो उसकी खूबसूरती निहारने में ही मग्न था, आशु ! अचानक, मेरा ही नाम सुनने से मेरी तंद्रा टूटी और मैंने बोला- हां जी! तुम्हे लगा था क्या? कभी हमारी मुलाकात भी होगी ? हां! क्यों नहीं, मैने सकारात्मक स्वीकृति दी, अचानक मौसम बहुत खराब हो गया था बारिश की कुछ हल्की-हल्की बूंदे उसके चेहरे पर गिरने लगी, तो उसने बोला- ऐसे तो हम भीग जायेंगे फिर उसने एक पेड़ की ओर इशारा किया, और हम वहां चल गए, बारिश अभी भी हो रही थी, हल्की-हल्की बौछारों में हम भीग रहे थे, उसके लबों पर पानी की कुछ बूंदे गिरने से वो और भी कातिलाना लग रहे थे, अब उसकी आंखों की पलकें भी भीग चुकी थी, बारिश की वजह से उसका पूरा बदन भीग गया था, बिजली की कड़कड़ाहट और ठंडी-ठंडी हवाएं इस और इशारा कर रही थी की मौसम और भी खराब होने वाला है वैसे तो दोपहर का समय था लेकिन सर्दी की वजह से मानो सूरज भी बादलों को ओढ के मस्ती-से सो रहा था, अभी दिन में ही चारों अंधेरा छा गया था, और हवाएं इतनी ठंडी चल रही थी मानो चारों ओर प्राकृतिक ए.सी. लगा हो, वो मेरे पास ही खड़ी थी और इधर-उधर भीगी हुई पलकों से देख रही थी, उसने सबकी नजरों से छुपकर मुझे बाहों में भर लिया मैं तो स्तब्ध था कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करूं, ठंडा-ठंडा महसूस हो रहा था, थोड़ी देर ऐसा लगा की मैं इस लोक में ही नहीं हूं , फिर होश में आया तो पता लगा, और मेरी निद्रा टूटी, इतना उदास हो गया की पूछो मत , दरअसल हुआ ऐसा की मैं घर में ही था, और तकिए को कस कर Hug कर रखा था दोपहर के एक बजने को था, छोटा भाई बार- बार पानी डाल रहा था, जिसकी वजह से तकिया भीग गया था, मुझे लग रहा था की बारिश हो रही है, मैं कब से ख्वाब ही देख रहा था, इसलिए होश में आते ही उदासी छा गई फिर जल्दी से मैने मेरे फोन को देखा तो उसी अजनबी का sms आया हुआ था, और अभी भी 6 महीने के बाद हम दोनों कर रहे है...........
......................इंतजार......................
.................आशीष गौतम..............
© aashurj31