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इंसानियत

बैशाख का महिना था। राजेश अपने दफ़्तर में बैठकर काम कर रहा था। बाहर से शोर सुनाई दिया। उसने घंटी दबाकर चपरासी को अंदर बुलाया। चपरासी के आते ही राजेश ने उसे पूछा, "क्या हुआ, किसकी आवाज़ है? किस बात शोर मचा है"?

उसने कहा, " कुछ नहीं साहब, एक बुजुर्ग आदमी है। उनका कुछ काम है, बहुत समय हुआ उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। हर दो- चार महीने में आकर बाप बेटा दोनों मिलकर हंगामा करते है"। राजेश को उसकी बात अच्छी नहीं लगी। राजेश ने तुरंत चपरासी को उन दोनों को अंदर भेजने के लिए कहा। थोड़ी देर में लगभग अस्सी से भी ज्यादा उमर के सरदारजी और उनका बेटा राजेश के कक्ष में आये।

चिलचिलाती धूप में आने के कारण पसीने में तरबतर बूढ़े सरदारजी गुस्से में लाल पीले हो रहे थे। आते ही उन्होंने चिल्लाना शुरू किया। अपने पिताजी की उम्र के व्यक्ति को देखकर राजेश के मन में उस पर गुस्सा आने के बजाय आदरभाव जागा। राजेश ने उसको बिठाया और चपरासी को पानी लाने के लिए कहा। पानी पीते ही उसका गुस्सा थोड़ा- थोड़ा ठंडा हुआ। राजेश ने उनको प्यार से पूछा, "अब बताइये ताऊजी क्या बात है? मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ? " उन्होंने अपनी समस्या बतायी। उनको अपने मकान के ऊपर दो मंजिल और बनानी थी। उसकी अनुमती लेने के लिए वे पिछले चार- पाँच सालों से चक्कर काट रहे थे। लेकिन अभी तक जितने भी अफ़सर आए किसीने भी उनकी बातों पर गौर नहीं किया, ऐसा उनका कहना था। यह बात अलग थी कि फाईल उन तक नीचे पदस्थ लोगों ने पैसा न खिलाने की वजह से अटका रखी थी। राजेश को यह बात बाद में मालूम हुई थी। फ़िर भी राजेश ने उनके सामने ही फाईल निकालने के निर्देश दिए। और उन सबके लिए चाय लाने के लिए चपरासी को कहा।

राजेश के व्यवहार से सरदारजी बहुत खुश हुए थे। और राजेश भी मन ही मन उनकी खुशी देखकर खुश हो गया था। राजेश को आशीर्वाद देते हुए सरदारजी बोले, "बेटा तुम्हारे बारे में बहुत सुना था कि तुम बहुत ईमानदार हो, सबके काम जल्दी करते हो। तुम्हें मिलने के लिए मैं कब से बच्चों के पीछे पड़ा था। लेकिन मेरी ये बात कहाँ मानते। आज भी नीचे कुछ लोग तुम्हें मिलने के लिए मना कर रहे थे। इसलिए मुझे गुस्सा आया।

मुझे माफ़ करना बेटा। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि तुम सिर्फ अच्छे अफसर ही नहीं बल्कि अच्छे इन्सान भी हो। अब मेरा काम हो या ना हो, तुम्हारी इंसानियत देखकर आज मैं बहुत खुश हूँ। यह कहकर वे दोनों चले गए। राजेश भी खुश हो गया कि आज किसी बुजुर्ग को वह थोड़ी खुशी दे सका।

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Usha patel