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ममता
एक छोटे से गाँव मे एक विधवा महिला रहती थी किसी तरह से वे अपने इकलौते पुत्र का पालन पोषण करती थी। मेहनत मज़दूरी करके अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर एक योग्य व्यक्ति बना दिया। बेटा बड़ा योग्य अधिकारी बन गया। घर माकन बनवाकर, पत्नी व बच्चों के साथ शहर में रहने लगा। माँ बूढ़ी हो चुकी थी। वह गाँव मे ही रहती थी। एक बार उसके मन मे आया कि शहर जाकर बेटे से मिलूँ। किसी तरह बूढ़ी माँ शहर गयी। बेटे के घर के दरवाजे पे पहुँची। सामने बरामदे में बेटे को देख जो अपने दोस्तों के साथ बैठा था। बड़ी प्रसन्नता से बोली, कैसे हो बेटा ? उसका बेटा कुछ नही बोला। उसकी पत्नी आई और अनदेखा करके चली गई। दोस्तों के चले जाने पर अपने पति को अंदर बुलाती है और उनसे कहती है आप माँ को मना कर दीजिए कि यहाँ न आएं। उनकी एक आँख खराब है। वे कानी है। उनके कपड़े अच्छे नही रहते हैं।, यहाँ आती है तो हम लोगों का अपमान होता है। उसकी माँ ने सारी बाते सुन ली.... वह बूढ़ी माँ उठी और धीरे-धीरे वहाँ से चली गयी। कुछ दिनों में बूढ़ी माँ बीमारी हो गई। पुत्रमोह ने फिर भी नही छोड़ा। उसने अपने पुत्र को पत्र लिखा, " जहाँ भी रहो आबाद रहो। मन मे एक लालसा लगी रहती थी कि मेरे पुत्र बड़ा आदमी बने, जहाँ भी जब तुम खेलने जाते थे तो तुम्हें 'आँख का सुर' कह चिढ़ाते थे। यह बात मुझसे सहन नही हुई और मैंने अपनी एक आँख निकलवाकर तुम्हें दे दी। मुझे तो सब लोग कानी कहते हैं, कहने दो, लेकिन केवल एक बार मेरी बूढ़ी आँखे तुम्हे देखना चाहती हैं। जिसके बाद में चैन से मर सकूँ । तुम्हारी माँ.........
जब उसकी बहु ने पत्र पढ़ा तो उसकी आँखें नम हो गयी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ.. वह अपने पति से पत्र के बारे में बताती है। बेटे को भी बहुत पछतावा होता है। बेटा अपने परिवार के अपने माँ से मिलने गाँव जाता है। लेकिन उसके पहुँचने तक बहुत देर हो चुकी थी उसकी माँ बेटे की प्रतीक्षा में चल बसी थी.....

"यह कहानी यही सिखाता है कि अपने माता- पिता का आदर करे... माँ अपने बच्चों के लिए हर मुश्किल को ख़ुशी- ख़ुशी सह लेती है...इस दुनिया मे माँ से बड़ा कोई नही"......