...

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तेरा ख्याल
मेरे ख्याल झोंके से है।
आते भी है तो बस जाने के इरादे से, और कभी कभी तो बरसात की बूँदों से इकट्ठा बरस जाते है बिना देखे की पैमाना तो पहले से भरा हुआ है।

ऐसी हालातों में किसी एक खयाल को चुन उसे किसी नदी किनारे ले जा कर डूबते हुए शाम को देखना मुश्किल से लगता है।

पर वो..

और उनके ख्याल...

लगता है जैसे उस ख्याली झोंके के संग किसी सूखे पत्ते की तरह वो सफर कर रही है।
और वो ख्याली झोंका उन्हें पथरीली ज़मीन की सतह छूने से पहले हर बार उठा दे रहा।

वो घण्टों इसी तरह किसी झोंके के संग सफर करती और दोनों के इस कदर साथ रहने से सृजन होता है कागज़ की बंजर जमीन पर अर्थ गाम्भीर्य से भरा शब्दों का पौधा।

जो देखते ही देखते फल फूलों से भरा वृक्ष बन जाता है और कोरे पन्नों की धूल छानते साहित्य प्रेमियों को तृप्त करता है।

उंगलियों के बीच टूटते मूँगफली के दानों की आवाज़ जैसी होगी क्या उनके कलम से टूट कर बिखरते शब्दों की आवाज़ कभी सोचता हूं मैं।

© Mystic Monk