क्या मैंने खो दिया है
क्या मैंने खो दिया है, बुक का टाइटल ऐसा क्यों, क्या मैंने पा लिया है, ये क्यों नही, क्योंकि पाने के लिए किस्मत में शायद कुछ है ही नही, सब कुछ खोने के लिए है, बचपन से लेकर अब तक, बचपन का तो पता नही, मगर जब से होश संभाला है, खुद के बारे में जाना है, तब से अब तक जो पसंद आया, और जिसको एक बार हासिल करने की सोच ली तो उसको हासिल करके ही छोड़ा हैं, मगर कुछ हासिल करने से क्या वो चीज़ या इंसान अपना हो जाता है नही, उसके लिए किस्मत भी होनी चाहिए, मैं ये नही कहती कि मेरे नसीब में खुशियां नही है, है मगर कुछ पल की जिंदगी भर के लिए नही भगवान मुझे खुशिया देते हैं, कुछ पल के लिए और जिंदगी भर के लिए मेरी जान से प्यारी चीज़/इंसान को मुझसे छीन लेते हैं, दिल दुखता है, रोता है, अंदर से इस तरह से टूट जाती हूं जैसे कभी सिमटुगी नही, मगर कब तक टूट के बिखरी पड़ी रहूँ, जब रो रो के थक...