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क्या मैंने खो दिया है
क्या मैंने खो दिया है, बुक का टाइटल ऐसा क्यों, क्या मैंने पा लिया है, ये क्यों नही, क्योंकि पाने के लिए किस्मत में शायद कुछ है ही नही, सब कुछ खोने के लिए है, बचपन से लेकर अब तक, बचपन का तो पता नही, मगर जब से होश संभाला है, खुद के बारे में जाना है, तब से अब तक जो पसंद आया, और जिसको एक बार हासिल करने की सोच ली तो उसको हासिल करके ही छोड़ा हैं, मगर कुछ हासिल करने से क्या वो चीज़ या इंसान अपना हो जाता है नही, उसके लिए किस्मत भी होनी चाहिए, मैं ये नही कहती कि मेरे नसीब में खुशियां नही है, है मगर कुछ पल की जिंदगी भर के लिए नही भगवान मुझे खुशिया देते हैं, कुछ पल के लिए और जिंदगी भर के लिए मेरी जान से प्यारी चीज़/इंसान को मुझसे छीन लेते हैं, दिल दुखता है, रोता है, अंदर से इस तरह से टूट जाती हूं जैसे कभी सिमटुगी नही, मगर कब तक टूट के बिखरी पड़ी रहूँ, जब रो रो के थक जाती हूं, और आँखों से आशु सुख जाते हैं, जब इस पूरी दुनिया से, इस दुनिया के लोगो से नफरत हो जाती है, जब मोम सा पिघलने वाला दिल ही पूरा पत्थर का हो जाता है, तब उठती हु, खुद को सिमटती हुई, अपने आँशुओ को पोछती हुई, और खुद से सबसे पहला शब्द कहती हूँ, भगवान जी मैं ही क्यों, मेरे साथ ही हर बार ऐसा क्यों, मगर मेरे इस क्यों का जवाब मुझे आज तक नही मिला, फिर सिर्फ एक ही शब्द रह जाता है, भगवान जो करता है अच्छे के लिए करता है, उसके बिना तो एक पत्ता भी नही हिलता, वो जो मेरे साथ इतना बुरा हर बार करता है, कुछ सोच के ही तो करता है, जो हमे हमारे लिए अच्छा लग रहा हो, वो उसकी नजर में बुरा हो, हमारे साथ और बुरा ना हो, या हमारे साथ शायद आगे इससे भी ज्यादा कुछ बुरा होने वाला हो, इसलिए वो खुदा हमे आगे होने वाला दर्द को सहने और बर्दास्त करने की हिम्मत दे रहा हो, वो हमें आगे के लिए इतना मजबूत कर रहा हो कि दर्द में भी हमे दर्द ना हो, दिल मे फिर एक बात और आती है, जब वो खुदा हमारे बारे में इतना अच्छा ही सोचता है कि हमारी सारी खुशियाँ छीन के सिर्फ नसीब में दर्द ही दर्द लिख देता है तो फिर वो हमे हमारी जान से प्यारी चीज़/इंसान को हमे देकर दो पल की खुशियां क्यों देता है, जब उसको पता है वो हमारे लिए सही नही है, तो हमे देता ही क्यों है, फिर जहन में एक छोटे से मासूम से बच्चे को देखकर एक बात आती है, जैसे माँ-बाप को अपने बच्चे के लिए पता होता हैं कि उसके लिए क्या सही है क्या गलत, माँ-बाप अपने बच्चे को सही चीज़ देते हैं मगर कभी कभी बच्चा किसी ऐसी चीज़ की जिद करने लगता है जो उसके लिए सही नही होता, माँ-बाप जानते है ये मेरे बच्चे के लिए सही नही है गलत है, मगर वो उसकी जिद के आगे बेवस और लाचार हो जाते है, और बच्चे को वो चीज़ दे देते हैं, और उस बच्चे को लगता हैं उसकी जान से प्यारी चीज़ उसको
मिल गई तो उसको जमाने की सारी खुशियाँ मिल गई, वो उसको पाकर बहुत खुश होता है, और जब उसकी जान से प्यारी चीज़ उसको दर्द देती है तब दुखी होता है, रोता है, ऐसे ही वो भगवान है, हमारी जिद के आगे वो मजबूर हो जाता हैं, इसलिए गलत चीज़ भी हमारी झोली में डाल देता है, सिर्फ इसलिए ताकि 2 पल के लिए ही सही उसका बच्चा खुश हो जाए, मगर दुख में भी हमे संभालता है, और आगे के लिए मजबूत करता हैं, ताकि दुख में हम अगली बार टूट के ना बिखरे, इतना सब सोच के उठती हूँ, और आगे बढ़ती हु, फिर पीछे मुड़कर नही देखती, ये खुदा मुझे ऐसे ही मजबूत करते रहना, और कभी मेरा अपने ऊपर से भरोसे को डगमगाने मत देना, अभी तक अपने ही संभाला हैं आगे भी संभालना, कितने भी दुःख क्यों ना दे लो, उफ तक नही करुँगी

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