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प्रेरणा: एक नई दिशा
*शीर्षक:- प्रेरणा*
बात नवीन माध्यमिक विद्यालय शिवपुर की है। साल का नया सत्र प्रारम्भ हुआ था। सभी शिक्षकों ने नव प्रवेशी बच्चों का गर्मजोशी से स्वागत किया। कक्षाएं संचालित होने लगी। सरोजिनी मैडम प्रत्येक बच्चों के मन को भांप कर विशेष ध्यान दिया करती थी। मैडम का नजर दुर्गेश नामक छात्र पर था जिसे पेड़ पौधों से एक खास ही लगाव था। कक्षा में पढ़ाई के दौरान वह मैडम से नजर बचाकर शाला के सामने बगिया को निहारता रहता था। बगीचा में पेड़ पौधों को निराई,गुराई पानी देने में उसे अति आनन्द का अनुभव होता था।
वृक्षारोपण का दिवस था। हेडमास्टर साहब छोटे-बड़े कितने ही किस्म के पौधे शाला में रोपण के लिए ले आए। उत्सव का माहौल था। सभी बच्चे अपनी-अपनी पसन्द का पौधा लेने के लिए आपस में खींचतान करने लगे परन्तु दुर्गेश एक किनारे शांत खड़ा देख रहा था।
अंत में बचे - खुचे पौधों में से सबसे कमजोर दिखाई देने वाला पौधा को लगाने के लिए अपने लिए छांटता है। सभी बच्चे यह देख उसका मजाक उड़ाने लगता है। शिक्षकगण भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे। मैडम के पूछने पर कि तुम इस कमजोर पेड़ को ही क्यों लगाना चाहते हो,तो दुर्गेश ने बड़े ही मासुमियत से कहा ये बातें मैंने शाला के सरोजनी मैडम से सीखा। जिस तरह मैडम कमजोर बच्चों को विशेष ध्यान देकर पढ़ाई में आगे लाना चाहती है, उन्हें प्रोत्साहित करती है,जब मै शाला में प्रवेश लिया था मन में एक डर था परन्तु मुझ जैसे कमजोर बच्चों को मैडम ने आगे लाने के लिए बहुत मेहनत करती है वैसे ही मै भी इस कमजोर पेड़ का देखभाल कर इसे जीवित रखने का प्रयास करुंगा।
दुर्गेश की इस कथन से चारों ओर सन्नाटा पसर जाता है एवं अचानक तालियों की गूंज सुनाई देती है।
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लेखिका- श्रीमती रीता चटर्जीखोंगापानी
कोरिया (छत्तीसगढ़)
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