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बिमला का दर्द
उसका नाम बिमला (विमला) था। अपने नाम के अनुरूप ही सुंदर , सौम्य, उज्ज्वल वर्ण और
पतली दुबली सी काया थी उसकी....सूती की साड़ी पहनती थी और साड़ी पहनने का अंदाज भी उसका कुछ अलग सा था। घुटनों से जरा नीचे और एड़ियों से बहुत ऊंची होती थी साड़ी उसकी....साफ_सफाई और अपने श्रृंगार_पटार को लेकर पूरी तरह सचेत रहती थी वो....
जब गली से हमारे गुजरती थी। सब फब्तियां कसते थे उसे....मगर किसी में भी हिम्मत न थी.....अपनी छोटी उंगली के पोरों से भी छू सके उसे कोई।

राह भर रुक_रुक कर जवाब देती फिरती थी वो....किसी को भी बिना जवाब दिए छोड़ती नही थी। इसी तरह विमला अपनी आप की दुनियां मे खुश थी। लड़ती_झगड़ती वो मौहल्ले की गलियों में घुमा करती थी।

बिमला घरों का काम करती थी। किसी के भी घर महीने भर से भी ज्यादा नहीं टिकती थी।
बिमला कामवालियों में महारानी सी थी। उसके नखरे भी बेहिसाब थे।
रेखा आंटी का घर ही एक ऐसा घर था जहां बिमला नौ सालो से टिकी थी। टिकती भी कैसे नहीं आंटी की तीन बेटियां बिमला को बहला फुसला कर जो रखती थी। कभी नेल पॉलिश, कभी सस्ती वाली या पुरानी पड़ी लिपस्टिक , कभी चूड़ियां उसे दे देकर खुश रखा करती थी। कई बार इन लड़कियों से बिमला की जम कर लड़ाई हो जाया करती थी। जैसे बर्तनों का ढेर ज्यादा रखने पर, बर्तन धोते वक्त एक्स्ट्रा बर्तन देने पर, पोछा करते वक्त किसी के पैरो की छाप देख लेने पर वगैरह। इन सब के बावजूद रेखा आंटी की बेटियां बिमला की खुशामद कर उसे रोक ही लेती थीं। खुशामदो से जब काम नही चलता तब ये लिपस्टिक और नेल पॉलिश का प्रलोभन काम आ ही जाता था।

यूं ही दिन गुजर रहे थे। आज रेखा आंटी ने बिमला के किसी काम से नाराज होकर उसे ताना मारा था, "घर_घर कैसे बनता है तुम्हे क्या पता..खुद का तो घर बसा ही नहीं।"
बिमला की आंखों से झर_झर आसूं बहने लगे। हमेशा चहकने वाली बिमला दुखी और खिन्न हो गई थी। उसकी आंखों के सामने उसका गुजरा वक्त एक बार फिर आ गया था।
उसने जिससे प्रेम विवाह किया था वो पहले ही शादी शुदा था। बिमला के साथ शादी के नाम पर धोखा हुआ था। इस शादी के चंगुल से निकलना भी बिमला के लिए किसी अजीयत से कम नहीं थी। वो रो रही थी... बस रोए जा रही थी।
अनु आज बिमला को चुप करा रही थी। और अपनी मां को डांटे जा रही थी। रेखा आंटी को भी अपनी गलतियों का एहसास था।
बिमला भी इस घर को छोड़ नही सकती थी क्योंकि उसे भी सबसे लगाव सालो का था।

यूं भी होता है कभी_कभी हम ना चाह के भी
गलती से किसी का दिल दुखा जाते है।


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