...

4 views

श्रावण की पहली सोमवार २०२४
आज मंगलवार है, कलकी व्यस्तता में पता ही नंही लगी क्या कुछ घटित हुआ । मैं बहत भूलकड़ हुं।
खुसी गुरू पूर्णिमा की कुछ अलग ही थी और सुनिथि श्रावण सोमवार के बारे में बहत, पर कभी ऐसे कुछ माना नहीं ।। घर पर उस दिन उपवास करें सभी तो मैं भी फलाहार कर लेती थी, पापा पहले दिनसे बताते मंदिर जा रहे हैं कल, तो मैं भी समय पर तैयार हो जाती थी । मंदिर की भीड से ज्यादा,
भोलेनाथ की दर्शन की प्रतीक्षा ज्यादा भाती थी । कोई बच्चा उस मै मील जाए घंटी बजाने की कोशिश करता हुआ, तो उसकी मदत करने की बहाने दो चार बार मैं भी घंटी बजा देती थी ।
मन जैसे महादेव से केहता हो आजी सुनते हो... " मैं आ गायी" । अब कन्हा वो दिन... वो केदार जाने की इच्छा, वो पहाड़ों की प्रतीक्षा। सब रुक गई जैसे वक्त के एक झोंके के साथ, पूरी तरह खामोश।

तैयारी तो एक साल पुरी की थी, फिर लोन के लिऐ भाग दौड़, पर वो तो आजाद होने की जिद में बन गई। पर जब बारी आई, सब तय हो गई, एडमिशन भी, ऐसा लगा अब इस से भाग जाऊं, क्यूं की देश से दूर तो जाना ही नहीं था। ये हिसाब किताब तो कभी हुई ही नहीं। महादेव से दुर, मम्मी पापा से दूर, लगा नहीं था वैसे इतनी दर्दनाक होगी, पर हुआ ।

अक्सर मैं भूल जाया करती हूं, मैं अकेली नहीं, मेरे साथ मेरी एक प्यारी फूल भी है, वो क्या मेहसुस करती होगी, और मैं खुद बच्ची बन जाति हुं। यूं तो कभी लगा ही नहीं, राम कृष्णा या महादेव अलग हैं किसी भी तरहा से, पर अक्सर जाना महादेव या जगन्नाथ जी के मंदिर ही होते थे, आज याद कर रही हुं तो सोच रही हुं, हम एक ही बार एक राम जी की मंदिर और एक ही बार एक कृष्ण जी की मंदिर गए हैं 🤣😌। हां सच मै पर हर कहानी जब भी सुननेको बैठते थे, नानी से, अकसर रामायण या महाभारत ही सुनना चाहते थे हम... बचपन में।
और नानी के साथ भी अक्सर भोलेनाथ की दर्शन को ही जाते थे ।

खैर कल पर आती हुं। एक हफ्ता हो गई एक सहेली से मिलनी थी, के हम दोनो ही सिटी चेंज कर रहे हैं और वो अपने घर दूसरी कंट्री जा रही। उसकी नानी इंडिया से बिलॉन्ग करती हैं। और हम दोनो की बहत जमती है। उसके पास बहत सारी अगरबती थी, तो वो मुझे दे कर जाना चाहती थी, ताकि मैं और न खरीदूं। अब वो दो चार साल के लिए जा रही है तो फिर मिलना भी हो नही पायेगी। वक्त की सुई आ कर कल पर अटकी, सोमवार साम चार वजह मिलनेकी । बहत सारी दुनिया भरकी गपसप, फिर हम निकले अपने अपने मंजिल के और।
रात को जब वो बड़ी बाली पोटली जो उसने पकड़ाई थी, ये बोल कर के बाकी पूजा की सामन भी तुम रखलो, ना चहिए होगी तो किस को देदेना।
एक पैकेट निकली खोल कर मैं बेहाल। उस मैं एक प्यारा सा शिव लिंग था। महाशिवरात्रि के एक दिन पहले वो पोटली आई थी इस साल मेरे पेरेंट्स ने भेजी थी, सीताराम और हनुमान जी की चित्र... खुशी की कोई सीमा नहीं, और वो तो पता थी, ये कॉम्प्लेट सरप्राइज थी । सच मै आज तक अनकंशियसली ही श्रावण मनायि थी, चातुर्मास की पहली दिन, वो भी सोमवार, और सामने महादेव, ऐसा लगा जैसे कह रहे हों, तेरी मंदिर आना miss
करता हुं मैं भी । आंखों में दो बूंद आंसू खुशी के छलके। फिर एक और बडी सी फोटो निकली, गैर से देखी तो मां महालक्ष्मी। मैंने झट्से गले से लगा ली, मन से बस इतनी निकली मां। खुसियों का कोई सीमा नहीं। फिर थोड़ी दैर सोशल मीडिया ब्राउज करती हुई, एक गाना सुनती हुइ मै सो गई ।

फिर सुबह मां की बात याद आई, चातुर्मास में लक्ष्मी जी की पूजा वो सुरू कर रही बोली थी । झटसे मैने कल किया पूछने को, कल कुछ स्पेशल दिन थी क्या । वो याद दिलाई ... हां था ना .. श्रावण की पहली सोमवार । अब तो फ़ोन रख कर में कूद रही थी । श्रावण की पहली सोमवार सब मंदिर जाते हैं, मेरे घर खुद महादेव आए हैं । पर बहत दुःख भी हुई सोच कर मैं पुजा नही कर पाई, काश वो पहले से बताती, काश मैं सुबह मिल लेती कल, काश मुझे पता होती बहत सारे विचार । फिर जैसे माधव बोले, हर दिन शुभ होती है सखी, तुम आज उनको बैठा दो, आज पूजा करलो, वो आए हैं याद दिलाने, और तुमसे सेवा लेने।

आज बहत ही संतुष्ट मेहसूस कर रही हुं, एक अजीब आत्मसंतोष, सायद ये आशुतोष जी के पधारनेकी ही विशेषता है। जैसे मनको कोई संकेत मील गई हो, अब शांत रहने की, अब सारी चिंता छोड़ बस उनके चिंतन मै चिरंतन खो जाने की ।।

वैसे कल बिना जाने भी दिन क्या है, मैं कैलाश की एक एपिसोड सुन रही थी सुबह, काम करते करते। फिर गुरुजिकी एक कथा प्रसंग सुनि, जिस मै वे बता रहे थे, कैसे हनुमान जी खुद राम जाप करने वाले एक बालक के लिए उसके गुरूजी की खोज करके लाए थे। कैसे हनुमान जी की साक्षात्कार कथा नही सच मै होती है भक्तों को । और शिव जी भक्त कैसे होते हैं, नागा साधु, अघोर और नंदी, और ज्ञानगंज। केदारनाथ, बद्रीनाथ और जाने क्या कुछ । और जैसे वो मेरे मन को मुझसे ज्यादा पढ़ रहे हों । शुक्रिया है बिस्वगुरु मेरे घर पधारने के लिए, मेरी संकल्प को पूरा करवाने। बहत बहत स्वागत आपकी आदियोगी, महाकाल, काल भैरव, मां महालक्षी मेरी । मुझसे कोई त्रुटी हो जाए तो माफ करदेना और मुझे बताना, के मैं आपको कैसे प्रसन्न करूं हर बार ।। श्री चरणों में कोटी कोटी नमन, और बहत बहत आभार।

#हरहरमहादेव #जयमहाकाल #जयमहलक्षी #जयश्रीराम #जयहनुमान #ओमनमःशिबाय

© All Rights Reserved By RameswariMishra