...

6 views

बचपना
लम्बे-लम्बे कदमो से मैं तेजी से चलने की कोशिश कर रहा था आज मुझे स्कूल जाने मैं फिर से देर हो गई थी मैं मन ही मन सोच रहा था की आज मैं टीचर से डाट खाने से बच जाऊ इसलिए अपने पैरो को बिना आराम दिये चले जा रहा था मेरा स्कूल ज़्यदा दूर ना होने की वजह से स्कूल पैदल ही जाना पड़ता था मैं कुछ बच्चों को स्कूल जाते हुये देख पा रहा था और मुँह से यही बात निकल रही थी काश मेरा स्कूल भी दूर होता और मैं भी रिक्शे से स्कूल जा पता अब इन सब बातो को दिमाग़ से हटा कर अब स्कूल के रास्तो पर तबज्जो देने लगा था कुछ दूर आगे पहुंच कर मैंने एक खिलौने वाले को देखा जिसने सर पर एक टोकरे मैं खिलोने रख रखे थे मगर उसके खिलौने को बाहर से देखा जा सकता था खिलौने वाले ने लाल रंग की नीली धारी वाली शर्ट पहन रखा था और नीचे नीली रंग की लुंगी डाल रखी थी उसके पास बहुत सारे खिलौने थे मगर मुझे इन खिलौनों मैं कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि अब मैं नवी क्लास मैं था मेरे अंदर से लग़भग बचपना खत्म हो चूका था | खिलौने वाला रोड के किनारे बैठ गया फिर एक चार साल का बच्चा दौड़ता दौड़ता आया उसकी आँखों मैं खिलौने के लिये प्यार छलक रहा था वो सब खिलौनों को छोड़ कर बंदूक को देख रहा था उसे बंदूक से खेलने की इच्छा थी शायद | मेरे कदम लगभग रुक से गए थे मैं ये सारी चीज़ो को देख रहा था अब खिलौने वाला खुशी की लहक मैं उससे पूछ ने लगता है बेटा क्या चाहिए आपको उसने बंदूक की तरफ हाथ बढ़या और फौरन हाथ को नीचे कर लिया मैं ये सब देख कर बहुत हैरान था उसने अपने पिता को आता देख फौरन भाग कर उनका हाथ पकड़ लिया और आगे की और जाने लगा मगर बार बार पलट कर वह उन बंदूक को देख रहा था शायद उसकी आँखों मैं उन बंदूकों को पाने की ज़िद नहीं थी उसे अपने ख्वाहिश का दायरा पता था मैं बड़ी गौर से उस बच्चे को देख रहा था खिलौने वाला भी उसे बड़ी हैरानी से देख रहा था मैंने फौरन इन सब चीज़ो से नजर हटाया और अपने स्कूल की और बढ़ने लगा मुझे उस बच्चे के लिये बड़ा दुख हो रहा था मैंने ऐसे बच्चा पहली बार देखा था मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गया मैं अक्सर अपने पिता से खिलौने की ज़िद करता था मेरे पिता अक्सर मुझे खिलौना दिला देते थे मैंने कभी अपनी ज़िद के आगे अपने पिता की मज़बूरी नहीं देखी थी अब मैं स्कूल पहुंच चूका था और रोज के टाइम से ज़्यदा देर हो गई थी अब मुझे बहुत डर लग रहा था मैंने स्कूल का गेट खुला देखा और चुप चाप अंदर घुस गया मुझे किसी ने देखा नहीं था मगर अब परेशानी ये थी की टीचर से कैसे बचे जो क्लास मैं बैठी होंगी अब जल्दी जल्दी क्लास की तरफ बढ़ने लगा था मेरी क्लास सबसे लास्ट मैं थी मैंने क्लास के अंदर पहुंच गया बच्चों का शोर आ रहा था और टीचर क्लास मैं नहीं थी मै ये देख कर बहुत ख़ुश हुआ और अपनी सीट पर जा कर बैठ गया मगर उस बच्चे की तस्वीर मेरे मन मैं छप गई थी उसको उन खिलौने के प्रति प्यार और अपने पिता के लिये स्नेह था मगर शायद उसको खिलौनों से ज़्यदा अपने पिता की मुस्कान ज़्यदा प्यारी थी इसलिए शायद उसने इन खिलौनों के लिये अपने पिता से कहा तक नहीं मुझे जिंदगी का कुछ हिस्सा समझ आ रहा था की बचपन ऐसा भी होता है जहा अपने सपनो के साथ सौदा करना पड़ता है.......