बेड़ियों का श्रृंगार
एक बेड़ी पगार की
हर महीने साफ हो चमक जाती
और उतनी ही जकड़ती जाती
पर श्रृंगार का त्याग संभव नहीं लगता
सब कहेते बहुत सुंदर है
इसे ही चाट अपना पेट और
इगो की भूख को शांत करता हूं
एक बेड़ी प्यार की
यह फूल की बेड़ी कांटो सहित आती है
अपने जज्बातों का भार डाल देता हूं
कभी अकेलेपन का साथी
इसी में नईया डूबती उभरती है
इसका त्याग असंभव लगता है
है तो बेड़ी ही, लो मस्तक पर धारण
एक बेड़ी है परिवार की
जो गौतम बुद्ध हो तो तोड़ दे ये बेड़ी
पर बल की कमी जान पड़ती है
और कलयुग में सहारा ही दूसरा क्या
मोह के रत्नों से सुसज्जित ये बेड़ी
बड़ी प्रशंसनीय है
और इसका त्याग वर्जित है
एक बेड़ी समाज की पहनाई हुई
जनम पर उपहार स्वरूप मिली
बड़ी छलिया है ये, और गले में धारण
आज कल सोशल मीडिया पर इसका प्रदर्शन लगता है
बहोत कठीन प्रतियोगिताएं आयोजित करता ये
इससे निकलना मुमकिन जान पड़ता है
आओ इसी से शुरुवात करें।
© अंकित राज "रासो"
#hindi #quote #poetry
#quoteoftheday #writersofindia
#shayari #inspirational
#raj_raso #WritcoQuote
हर महीने साफ हो चमक जाती
और उतनी ही जकड़ती जाती
पर श्रृंगार का त्याग संभव नहीं लगता
सब कहेते बहुत सुंदर है
इसे ही चाट अपना पेट और
इगो की भूख को शांत करता हूं
एक बेड़ी प्यार की
यह फूल की बेड़ी कांटो सहित आती है
अपने जज्बातों का भार डाल देता हूं
कभी अकेलेपन का साथी
इसी में नईया डूबती उभरती है
इसका त्याग असंभव लगता है
है तो बेड़ी ही, लो मस्तक पर धारण
एक बेड़ी है परिवार की
जो गौतम बुद्ध हो तो तोड़ दे ये बेड़ी
पर बल की कमी जान पड़ती है
और कलयुग में सहारा ही दूसरा क्या
मोह के रत्नों से सुसज्जित ये बेड़ी
बड़ी प्रशंसनीय है
और इसका त्याग वर्जित है
एक बेड़ी समाज की पहनाई हुई
जनम पर उपहार स्वरूप मिली
बड़ी छलिया है ये, और गले में धारण
आज कल सोशल मीडिया पर इसका प्रदर्शन लगता है
बहोत कठीन प्रतियोगिताएं आयोजित करता ये
इससे निकलना मुमकिन जान पड़ता है
आओ इसी से शुरुवात करें।
© अंकित राज "रासो"
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