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सरहद
चातुर्मास की रात थी। चित्रा खूब सज कर नई नवेली दुल्हन की तरह तैयार होकर छत पर बौहिनिया के पेड़ के नीचे चुप चाप से बैठ कर मन ही मन कुछ सोच रही थी और खुश हो रही थी। आसमान में बादल घिर आए थे। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। नजारा बेहद सुंदर था। एक ओर एक 30 वर्ष की महिला गुलाबी बौहीनिया के पेड़ के नीचे दुल्हन की भेष में झूले पर बैठ कर आसमान की ओर देखते हुए कुछ सोच रही है और मन ही मन मुसक रहीं है। घर की सजावट के लिए अलग अलग रंग की लाइट लगाए गए है। उसकी रोशनी से चित्रा का चेहरा और भी खिल रहा है। उसके कपड़ों पर लगे सितारे चमक रहे है। साथ ही साथ गुलाबी रंग का पुस्प नजारे की सौंदर्य को और भी बढ़ा रहा है।

अम्मा! अम्मा ! शब्द ने आवाज लगाई। पर चित्रा तो अपनी ही दुनिया में खोई हुए थी। शब्द के बहुत प्रयत्न करने के बाद चित्रा को चुभती हुई शब्द की आवाज सुनाई दी और वो अपने ख़यालो से बाहर आई। आ रही हूं ! कहकर वो नीचे चली गई ।

नीचे थोड़ी गर्मी थी , चारो ओर शोर गुल थी। मेहमान आए जा रहे थे । उन सब की खातिरदारी में चित्रा इतनी व्यस्त हो गई की उसे लैंडलाइन की घंटी की आवाज़ तक सुनाई नहीं दी। बहुत देर तक घंटी बजती रही पर किसी ने नहीं सुना । शब्द को बहुत भूक लग रही थी। वो फलो के अलावा और कुछ खा नहीं सकता था क्युकी पूजा उसके पिता के हाथो होनी थी और वो अबतक नहीं आए थे। शब्द ने जब कुहराम मचा दिया तब चित्रा ने...