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अलसाया दोपहर
आज फिर थोड़ा अनमाना सा था मैं, तो खिरकियां खोल बाहर निहारने लगा। अब लग रहा है रौशनी ही चहिए थी मुझे। बहुत अंधेरा जमा कर लिया था अंदर; कुछ धुंध भी है पर अंधेरा गहरा है!
कितनी मुक्त होती है हवा कोई रोकता नहीं इन्हें। बगीचे से गुजरे तो पत्तियां ताली पीट-पीटकर झूम उठती है, वरना तो पत्तियां भी विशालकाय पेड़ो के साथ...