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शिवरात्री की यादें
समय कब पंख लगा कर उड जाता है पता ही नही चलता। समय के साथ बहुत कुछ बदलता
रहता है। आज महाशिवरात्रि है। हमारे बचपन में आज के दिन कितनी धूम हुआ करती थी।


सुबह सवेरे उठ जाना। उठ कर नित्य कर्म के
बाद सारे पूजा गृह में इकठ्ठा होते। माँ आराम से बैठ पहले शिवजी का अभिषेक करतीं, फिर ज्योत जला कर फल फलाहार और भंग
का भोग लगता।

मैं और माँ मंदिर जाते। भैय्या और पापा घर पर ही टी. वी देखते। मंदिर में बडी लाइन लगी
होती कभी कोई गर लाइन तोड कर आगे निकल जाता कम से कम आठ-दस लोगों की
भीड इकठ्ठा होती और बहस बाजी शुरू हो जाती। इतने में पुलिस वाले आजाते।

उस दिन भी शिवरात्री थी। माँ ने भोग वाला भांग निकाला पापा और भैय्या को दिया, फिर
उस में पानी मिलाकर मुझे दिया और खूद सेवन किया। पता नही पापा ने क्या जोक किया माँ हँस रहीं थीं तभी पापा ने अपना उनसे बदल लिया, हमने देखा पर समझ नही पाए।

फिर क्या था दोपहर के चार बज रहे, माँ सुबह
सिर्फ हँसे जा रहीं थीं, पापा मजे ले रहे थे। हम
कभी हँसते, तो कभी डरते। मैंने माँ से कहा माँ
ज्यादा मत हँसो पापाजी को हँसना पसंद नही है, वे नाराज हो जाएँगे, हाँ करके बच्चों की तरह मुँह पर हाथ रख लेतीं। कुछ देर बाद फिर हँसने लगतीं।

शाम के सात बज गए थे। तभी नीचे वाली आँटी प्रसाद लेकर आईं। हर साल अडोस-पडोस के बीच प्रसाद का आदान-प्रदान होता था। इस बार सारा काम मैंने अकेले ने किया।
आँटी ने माँ को देखा, कहा नींबू पानी बना कर
पिलाओ और सिर पर ठंडा पानी डालो। अब डाले कौन?

पापाजी आगे आए। उन्होने माँ का हाथ पकडा और नल के नीचे उनका सर भिगोने लगे। मैंने नींबू पानी बनाया माँ को पिलाया।
वे शाँत होकर सो गईं। फिर उन्हें गर्म ओढा कर
सुला दिया गया। आज पैंतीस साल बीत गए हैं
इस घटना को, माँ भी इस दुनिया में नही है। पर उनकी याद आज ताजा हो गई है।