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दूरभाष
बात ज्यादा पुरानी भी नहीं हैं और इतनी नई भी नहीं अब कुछ लोग सोचेंगे घुमा फिरा कर वहीं विषय, हैं ना! चलो एक बार और सही पर अतीत को टटोलते है।
☎️दूरभाष
उपर लिखा शब्द देख कर समझ ही गए होंगे आप?तो उस समय फोन होना बहुत बहुत बड़ी बात थी,एक आध व्यक्ति के घर होता था वो भी लैंडलाइन।आज कल की तरह नहीं फोन उठाओ और चल दो,अब पड़ोसी क्या करते थे की उस फोन वाले व्यक्ति का नंबर अपने रिश्तेदारों को दे देते थे।अब गौर करने की बात ये है नंबर होते हुए भी रिश्तेदारों ज्यादा फोन नहीं करते थे वहीं महीने में एक बार या दो बार इसके पीछे कारण था उन में से भी ज्यादातर के पास खुद के फोन नहीं हुआ करते थे वो पास की किसी एसटीडी में जाकर फोन करते थे और नजर रहती थी हर मिनट बढ़ते हुए रुपयों की ओर, तो होता क्या था बस जरूरी बातें ही हुआ करती थी कभी कभार कुछ आंसू टपक जाया करते थे तो कभी चेहरा हसी से खिल जाता था।तब फोन के तार दिलों से जुड़े होते थे।आज तो फोन तारों से ना जुड़े होने पर भी हम बोर हो जाते है किसी से दो पल ज्यादा बात करने पर आजकल की पीढ़ी कहेंगी अजी बड़े खाली लोग थे काम धाम कहां करते थे हमें देखो दिन रात लगे हुए है कि हमें ये भी नहीं पता रहता हमारे बगल वाले डेस्क में शर्मा है या वर्मा।तब पड़ोसी भी एक रिश्तेदार की भांति ना दिन देखते थे ना रात कोई विपदा आने पे खड़े रहते थे साथ ये थी उन दिनों के दूरभाष की बात।