Ek ehsas hai ye rooh se mehsus Karo...
. उनकी प्रेमकहानी सचमुच फिल्मी थी । "वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, एक मोड़ तक लाकर छोड़ देना अच्छा" । ये पंक्तियाँ युवा साहिर लुधियानवी ने अपनी प्रेमिका अमृता प्रीतम से कहा था । लेखिका , कवियत्री "अमृता" जितनी अपनी रचनाओं के लिए सराही गयी उतनी ही अपने प्रेमसम्बधों के लिए भी चर्चित रही । अमृता का पूरा जीवन उनके भीतर के अधूरेपन को तिल तिल सहेजते हुए सम्पूर्णता की ओर बढ़ा । लाहौर के इंटर कालेज़ में 15 साल की अमृता और तरुण साहिर लुधियानवी के बीच शुरुवाती आकर्षण पनपा । अमृता बताती है कि उन्ही दिनों एक यात्रा में भी इत्तफाकन एक ही बस में दोनों सवार हुए । बस में दूर दूर बैठे साहिर और अमृता पूरे सफ़र में चोर नजरों से एक दूसरे को ताकते रहे । अमृता और साहिर के जज्बातों का भान होते ही अमृता के पिता ने कालेज के प्रिंसिपल दोस्त को कह साहिर को कालेज़ से निकलवा दिया था । बस उनके बीच अहसासों की लहर को यही विराम लग गया । कुछ ही दिनों बाद 16 वर्ष की अमृता का विवाह उम्र में उनसे काफ़ी बड़े सरदार प्रीतम सिंह जी से हो गया । दो बच्चों के जन्म के बाद भी भावनात्मक जुड़ाव के अभाव में पति पत्नी का ये रिश्ता अलगाव के साथ आखरी मुक़ाम तक पहुंचा ।
इसी बीच विभाजन के बाद 1947 में अमृता प्रीतम पाकिस्तान छोड़ हिंदुओं के लिए निर्धारित क्षेत्र भारत आ गयी । अमृता के पाकिस्तान छोड़ देने के दो साल बाद ही साहिर फिल्मों में लिखने के लिए भारत आ गए । लाहौर के कालेज़ में पनपी वो खामोश मोहब्बत सरहद पार भी अमृता का पीछा करती मुम्बई तक आ गयी । साहिर मुम्बई में फिल्मों के लिए गाने लिख रहे थे और अमृता दिल्ली में आकाशवाणी से प्रसारित कार्यक्रमों व अन्य साहित्यिक गतिविधियों में व्यस्त थी । एक अंतराल के बाद...
इसी बीच विभाजन के बाद 1947 में अमृता प्रीतम पाकिस्तान छोड़ हिंदुओं के लिए निर्धारित क्षेत्र भारत आ गयी । अमृता के पाकिस्तान छोड़ देने के दो साल बाद ही साहिर फिल्मों में लिखने के लिए भारत आ गए । लाहौर के कालेज़ में पनपी वो खामोश मोहब्बत सरहद पार भी अमृता का पीछा करती मुम्बई तक आ गयी । साहिर मुम्बई में फिल्मों के लिए गाने लिख रहे थे और अमृता दिल्ली में आकाशवाणी से प्रसारित कार्यक्रमों व अन्य साहित्यिक गतिविधियों में व्यस्त थी । एक अंतराल के बाद...