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मिस रॉन्ग नंबर 18
#रॉन्गनंबर

~~~~ पार्ट 18 ~~~~

(जीत फोन आए लड़की की मदद के लिए निकलता है~~~~)

आखरी पल~~~~

"सो.. तुरंत तुम्हे ही कॉल किया और तुमसे धीमी आवाज में मदद मांगी..! लेकिन तब तक वह दरवाजे तक पहुंच चुका था... , सो... मैं फिर से बेहोश होने का नाटक करते हुए लेटी रही ताकि मैं उसकी हलचलों पर नजर बनाए रखूं...!"

वह वापस लौटा... उसके एक हांथ में एक थाली उसमें कुछ सामान... और दूसरे हांथ में.... वो कपड़े की गुड़ियां, तथा मेरा बैग था, जो वो खुद उठा कर लाया था ।

अब आगे~~~~

"उस कमरे का स्ट्रक्चर कुछ ऐसा है.. की तुम जिस दरवाजे से आएं वह उसके आसन के पास वाला दरवाजा था, जो बाहरी बड़े कमरे से सटा था...! आसन के पीछे शायद खिड़कियां या फिर पारदर्शी शीशे लगे हो.. किंतु अंदर से वहां मोटे पर्दे लगे थे जिससे बाहर का कुछ भी न दिख रहा था ।

मेरे लिए, या फिर जिस किसी के लिए बनाया हो.. उस घेरे के, बिल्कुल बाएं हिस्से में एक और दरवाजा है जिसके ऊपर एक दरवाजे की पूर्णाकृति वाला आइना लगा हुआ था...! उसके वहां से अंदर जाने और आने की वजह से वह खुला था... दरवाजा शायद किसी खास तकनीक से बंद या खोला जाता है, क्योंकि उस पर कोई कुंडी ताला आदि नहीं था... या यूं कहे की किसी को देखने मात्र से शक भी ना होगा की यह दरवाजा है या सिर्फ कोई आइना... । मगर आईने के पीछे खुफिया रास्ता था जो नीचे की ओर जाता था ।
मतलब कमरा पूरी तरह से बनाया ही इस तरह था की किसी को कानोंकान भनक तक न लगे की अंदर क्या हो रहा है । सभी तरफ से मुस्तैद बंदोबस्त...!

उन आकृतियों के बिल्कुल सामने तथा उन पर्दो के आगे.. उसकी अपनी बैठने की जगह थी, बकायदा उसका बड़ासा आसन वगैरह रखा था, वहीं उसने उसका सारा साजो सामान ढंग से सजाकर रखा हुआ था । कमरे को देख कर आसानी से लगता था की यही इसका ऐसे खास कारनामों के लिए बनाया गया कमरा होना चाहिए...!
उन मोमबत्तियों के उजाले में सही पर, उसके लौट कर आने तक मैने उस स्थान का मुआयना पूरा कर लिया... ताकि बाद में मुझे छुटकारे में परेशानी न हो...!!

( क्रमशः ~~~~ )

(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
© Devideep3612