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विजय नगर
"लुई अब मुह छुपा रहा है। उसका एक ही मकसद रह गया है कि वो या तो कहीं गर्द में मुह देकर मर जाए या फिर संकेत ।"

कसीदा आमीन:- ये क्या किया लुई? अगर यही करना था तो मुझे फैकल्टी क्यों बुलाया? स्पिक-मके पे मैं पहुंची और पता चला कि तुम विजय नगर गए हो रूम पे यलगार मचाने के लिए।

लुई :- संकेत वो आदमी जो ये कह कर अपना रुतबा जमाता है कि, "हम तो बेवकूफ बनाने की फैक्ट्री हैं, किसी का भी काट देंगे", और तुमने उसी की बातों में आकर, lsd की लालसा में, किसी तीसरे के पैसे को यार की रखैल बनवा के उड़वा दिया। आत्मा मेरी भो थोड़ी काली थी, मैं भी मान गया, और अंदर ही अंदर घुटता रहा। कब तक खुद से झूठ बोलती रहोगी? क्या करे अब? समझ नहीं आ रहा है।

ये जानते हुए भी की प्राइमरी गलती कसीदा की है। जो जानती है कि संकेत सेफ ऑप्शन नहीं है मगर फिर भी... लुई इसमें कुछ कर भी नही सकता था क्योंकि डील वही करवा रही है। लुई का ट्रस्ट करना बनता था और मजबूरी भी थी। वो किया भी। उन दिनों लुई के साथ घोंघा हुआ करता था। दोनों खुद को रंगा बिल्ला समझते थे। वही एटीट्यूड था। गाँजा, n10 और ना जाने क्या क्या। बेघर फैकल्टी में ही रेन बसेरा हो रखा था। सोने के लिए रात में कसीदा के फ्लैट पे चले जाते थे। विजय नगर डबल स्टोरी भी विचित्र ही जगह है। वहाँ के लोगों का कहना है कि वो पाकिस्तान वाले पलायन का हिस्सा हैं। 95-96 तक तो उस जगह की कोई पूछ ज्यादा नहीं थी। अर्ली 2000 तक भी वो कमरा किराए पे लेने के लिए सस्ती जगह थी। कसीदा का फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पे था। विजय नगर दिल्ली विश्वविद्याल नार्थ कैंपस के स्टूडेंट'स घेटो था। आज भी है। वहाँ हर साल क्राउड चेंज होता है। आज भी हर साल पुराने लोग जाते है और नए बच्चे आते हैं। लुई विजय नगर की बदनाम गलियों में लगभग एक दशक हो गया था घूमते घूमते। नार्थ कैंपस के आस पास का कोई इलाका नहीं होगा जहां लुई ने समय समय पर रैन बसेरा ना किआ हो।


कसीदा संकेत और शब्बो के साथ रह रही थी। दिनचर्या बहुत खराब, हाइजीन तो पूछो मत। गाँजा, कड़की और न कोई नौकरी। क्योंकि नौकरी करने का मन नहीं है। परपज़ क्लियर नहीं है। 27 साल की उम्र में भी फस्ट इयर की लाइफस्टाइल जीनी है। क्यों, तो मन कर रहा है। ऐसी ही स्थिति में वो घोंघे के साथ अक्सर कसीदा के रूम में जाता था। ये लगभग साल 2011 की बात होंगी जब लुई फैकल्टी में सेल्फ प्रोक्लेमेड अखंड की ज़िंदगी जीता था।

लुई के साथ संकेत ने नशे के मामले में धोका कर दिया था। लुई को पहले से आभास था मगर वो एक हद तक मजबूर था। उसका खुद का लोभ भी इस परिस्थिति का एक कारण था। वैसे लोभ ही था अब चाहे लुई का हो या कसीदा का या दोनों का जो ये हालात अब पनप चुके हैं।

उसने सना के प्रोमिस की लाज रखते हुए कुछ नहीं कहा। मगर उसे क्या पता था कि सना खुद ही अपना प्रोमिस तोड़ देगी। चूंकि सना एक महिला है और वो उसके साथ बदसलूकी नहीं कर सकता, ये सोच के लुई चुप रहा। उसको जेएनयू के एक दोस्त के थ्रू एक स्विट्ज़रलैंड की लड़की ने अपने लिए, जो संस्कृत पीएचडी की स्टूडेंट थी शायद, एम.डी.एम. ए खरीदने के लिए सम्पर्क किया था और लुई ने ये बात कसीदा से पूछी कि, "कोई ऑप्शन है क्या?" तो कसीदा फटाक से बोल पड़ी, हाँ बिल्कुल है ऑप्शन। अब लुई दिल का साफ और आत्मा का काला। ऑप्शन तो था मगर दोनों के लालच ने उस ऑप्शन के आपरेशन का पोस्टमार्टम कर दिया और वही हुआ जॉक लुई कप डर था। लुई बोखला गया। अब वो कुछ सोच नहीं पा रहा है। लुई और घोंघा दिन भर साथ रहते ही थे, कभी बहादुर चाय, कभी बैम्बूज़, कभी जीटीआई तो कभी स्पिक-मके और रात में अक्सर पटेल चैस्ट रॉड के डिवाइडर पे। रातों रात। कभी कभो ऐसा भी होता था कि किसी अनजान फ्लैट की छत पे रात बितानी है। टॉप-फ्लोर पे। छत पे कमर था। कमरे की छत पे रंगा बिल्ला। लुई और घोंघा।
© Kunba_The Hellish Vision Show