...

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इज़हार ए इश्क़
इज़हार-ए-इश्क को , बेताब हूँ मैं आज
दिल के हर राज , बताने को बेताब हूँ मैं आज

मौका भी है और दस्तूर भी है , कह दूँ आज
दिल की बेताबी को , बताने को बेताब हूँ आज

हर इश्क़ की एक मंजिल होती है , मुझे भी मिले
बस अब और सब्र नहीं , तुम्हे पाने को बेताब हूँ आज

मुदद्तों से दिल के अरमान , छुपाए है मैंने मेरे
अब अरमानों को पँख , देने को बेताब हूँ मैं आज

ये दूरियां अब कब तक सहूँ , अब और नहीं
बस मिलन की चाहत है और मिलने को बेताब हूँ मैं आज

ये उम्र कहीं , यूँ ही धीरे धीरे तन्हा न गुजर जाए , डरता हूँ
दिल कहता है , कह दूँ उनको मिल के , की मिलने को बेताब हूँ मैं आज...
© M.S.Suthar