...

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mmmm
माया की कमाई
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घनघोर उदासी ,कब की बासी
रंग की भूखी ,नूर की प्यासी
एक आह लिए एक चाह लिए
दूर तलक आंखों के शाखोँ में लिपटी है
जैसे काला नाग एक, विक्राल विषधर
क्रोध से फुफकारता जीवन के राह पर
और पीछे मेरे खाई अपार , दाएं बाएं ऊंची दीवार
बोलो मेरा अब शेष जीवन कितना ???
आगे चार कदम पीछे चार कदम
शायद इससे भी थोड़ा कम
उपर से ये नाग की स्थिरता जानें कब आवेश में आ जाए
अपने रहनुमा अपने मालिक के शक्त आदेश में आ जाए
हाय ! आगे बढूं, या पीछे बढूं
दोनों...