मोरे सईया गए परदेस
आज भी याद है मुझे धूप और धुएं की झुलसन में जलती तेरी आंखें,
गोबर के उपलों में सिकी हुई रोटी और शहद से गूथीं तेरी बातें,
माथे पे सिमटती बूंद लगे जैसे चांद और सूरज भी तुझसे लड़कर हैं हारे,
नयनों में उल्लास भरे कितने चितवन फिर भी ना मुझको निहारें,
एक बार देखने की चाह में मुझे वो छज्जों पर से तेरा झुक जाना,
घंटों वो...
गोबर के उपलों में सिकी हुई रोटी और शहद से गूथीं तेरी बातें,
माथे पे सिमटती बूंद लगे जैसे चांद और सूरज भी तुझसे लड़कर हैं हारे,
नयनों में उल्लास भरे कितने चितवन फिर भी ना मुझको निहारें,
एक बार देखने की चाह में मुझे वो छज्जों पर से तेरा झुक जाना,
घंटों वो...