इंतज़ार
मंगल चलता जा रहा था अपनी मंज़िल की ओर कि अचानक उसका पाँव यूँ मुड़ा और वह धरती पर गिर पड़ता है! अचेत अवस्था में मंगल आसमान को देखते जा रहा था और धीरे-धीरे उसके आँखों के सामने अँधेरा छाता जा रहा था!
पूरी रात जंगल में गुजारने के पश्चात सुबह की सुंदर किरणों के साथ मंगल की आँखें खुलती है और वह अपने स्वप्न में देखे हुए एक चेहरे को हकीक़त मान उसे वह अपने इर्द गिर्द तलाशने लगता है!
अधूरे मन से फिर वह अपनी सफ़र की ओर आगे बढ़ता है। मानो उसके पैर आगे बढ़ ही न रहा हो।
कुछ दूर चलने के पश्चात मंगल मौसम और अपने भीतर के कल्पना रूपी चित से विचलित होकर उसी जंगल के एक छोर पर अपना एक कुटिया बना लेता है और उस चेहरे के आने का इंतज़ार वहीं करने लगता है।
बरस दर बरस बीतते जा रहे और मंगल बस अपने मन के उपजे कल्पित स्वरूप को ढूँढ़ने में लगा रहा ....
उसे लगता है कि उसकी मंज़िल सिर्फ़ उसको ही ढूँढ़ना है जो उसके मन से उपजी एक कल्पना है!
इसी बीच मंगल को प्रकृति से गहरा प्रेम और नाता हो जाता है अपनी कल्पना को साकार रूप देने के लिए वह प्रकृति के हर रूप का जतन करने लगता है और प्रकृति की खूबियों को बारीकियों से जान जाता है।
मंगल में इतनी काबिलियत हो जाता है कि वह समस्त जीवों के मनोभाव को समझ सकता है।
सभी प्रकार के जीव जंतु मंगल के अच्छे दोस्त बन जाते हैं मानो की संपूर्ण जंगल ही मंगल का घर और समस्त जीव-जंतुओं उसके परिवार हो जाते हैं।
मंगल हर पल खुश रहता परंतु उसके हृदय में उस...
पूरी रात जंगल में गुजारने के पश्चात सुबह की सुंदर किरणों के साथ मंगल की आँखें खुलती है और वह अपने स्वप्न में देखे हुए एक चेहरे को हकीक़त मान उसे वह अपने इर्द गिर्द तलाशने लगता है!
अधूरे मन से फिर वह अपनी सफ़र की ओर आगे बढ़ता है। मानो उसके पैर आगे बढ़ ही न रहा हो।
कुछ दूर चलने के पश्चात मंगल मौसम और अपने भीतर के कल्पना रूपी चित से विचलित होकर उसी जंगल के एक छोर पर अपना एक कुटिया बना लेता है और उस चेहरे के आने का इंतज़ार वहीं करने लगता है।
बरस दर बरस बीतते जा रहे और मंगल बस अपने मन के उपजे कल्पित स्वरूप को ढूँढ़ने में लगा रहा ....
उसे लगता है कि उसकी मंज़िल सिर्फ़ उसको ही ढूँढ़ना है जो उसके मन से उपजी एक कल्पना है!
इसी बीच मंगल को प्रकृति से गहरा प्रेम और नाता हो जाता है अपनी कल्पना को साकार रूप देने के लिए वह प्रकृति के हर रूप का जतन करने लगता है और प्रकृति की खूबियों को बारीकियों से जान जाता है।
मंगल में इतनी काबिलियत हो जाता है कि वह समस्त जीवों के मनोभाव को समझ सकता है।
सभी प्रकार के जीव जंतु मंगल के अच्छे दोस्त बन जाते हैं मानो की संपूर्ण जंगल ही मंगल का घर और समस्त जीव-जंतुओं उसके परिवार हो जाते हैं।
मंगल हर पल खुश रहता परंतु उसके हृदय में उस...